Wednesday, May 27, 2009

मृत्यु का सच!


मर के भी  कब्र में क्यों है बेचैनी,
वो खलिश अज़ीब किस्म की थी.

चारागर मशरूफ़ थे ईलाज-ए- मरीज-ए-रुह में,
बीमार पर जाता रहा तकलीफ़ उसको को जिस्म की थी.

किस्सागो कहता रहा ,रात भर बातें सच्ची,
नींद उनको आ गयी, तलाश जिन्हें तिलिस्म की थी. 

4 comments:

  1. Mere pas aapki rachnaaon ke liye kabhi alfaaz nahi hote..lekin beinteha dardse guzra hua wyakti, kahin na kahin jake, ek dujese,kahin seedha samvad kar leta hai..aur kayi baar mai dekh raheen,hun, aapki aur meri kalpna bhi eksi hoti hai!
    Aapke jin geeton ko padhke mujhe apni chand rachnayen yaad aayee unka zikr karna chahungi..Ijazat hai?
    Agli tippaneeme..

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  2. Abhi ise apne blogpe daal doongi...mere paas adhoorisi hai..."duvidhape" shayad mil jaye..phirbhi, jin panktiyonka sandarbh dena chahti hun, wo yaad hain..

    Behtar hoga devnagari me "copy paste "karke daal dun...
    snehadar sahit
    shama

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  3. " किसीके लिए मै हक़ीक़त नही,
    तो ना सही!
    हूँ मेरे माज़ीकी परछाई,
    चलो, वैसाही सही!
    जब ज़मानेने मुझे
    क़ैद करना चाहा,
    मै बन गयी एक साया,
    पहचान मुकम्मल मेरी
    कोई नही तो ना सही!
    किसीके लिए...
    रंग मेरे कई,
    रूप बदले कई,
    किसीकी हूँ सहेली,
    तो किसीके लिए पहेली,
    मुट्ठी मे बंद करले,
    मै वो खुशबू नही,
    किसीके लिए..."
    Rachna adhooree hai..pooree, rachna apne blogpe likhne jaa rahee hun.."mutthheeme band kar le, mai wo khushbu nahee"..is khayalka pratibimb aapki rachname nazar aaya..

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  4. सूखा पानी..!
    ये रचना, "Leo" जी के ख़ातिर पोस्ट कर रही हूँ...
    उनकी एक रचना पढने के बाद मुझे मेरे अल्फाज़ याद आ गए..उनकी रचा से कोई तुलना नही क्योंकि, वो अतुल्य हैं...
    "leo" सही मायनेमे रचनाकार हैं...और मुझे किसी "छंद" का ज्ञान नही...!

    बेलगाम,तूफानी दरिया था,
    कश्तीको उसमे बहा दिया,
    सँग मँझधार, भँवर मिला !

    डरे-से साहिलोंको देखा,
    मूँदी आँखें,पतवार फेंका,
    के, समंदर बुला रहा था!

    उफ़ !क्या गज़ब ढा गया !
    थी साज़िश, या तमाशा!
    बहता दरिया, सूख गया!

    साहिल,ना समंदर मिला,
    दूर खडा, बेदर्द किनारा,
    देख मुझे, मुस्काता रहा!

    आँखोंसे सैलाब माँगा,
    हाथ उठाके, की दुआ,
    खुदाको मंज़ूर ना हुआ!

    सुकूँ मिला,न किनारा,
    बस दश्तो सेहरा मिला,
    खुदाया! ये क्यों हुआ?

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