Friday, July 10, 2009

मेरा सच


मै अपने आप से कभी घबराता नहीं,
पर खाम्खां सरे आईना यूंहीं जाता नहीं.

चापलूसी,बेईमानी,और दगा,
ऐसा कोई फ़न मुझे आता नहीं.

बात हो सकता है के ये कडवी लगे,
क्या करूं मैं,झूठं बोला जाता नहीं.

दिल तो करता है तुम्हें सम्मान दूं,
मेरी फ़ितरत को मगर भाता नहीं.

कैसे बैठूं मैं तुम्हारी महफ़िल में,
जब तुम से सच मेरा सहा जाता नहीं.

मत दिलाओ दिल को झूठीं उम्मीदें,
इश्क वालों से अब ज़िया जाता नहीं.

जा मरूं मैं दर पे जाके गैर के,
राय अच्छी है,पर किया जाता नहीं.



5 comments:

  1. सुन्दर रचना आभार !

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  2. मत दिलाओ दिल को झूठीं उम्मीदें,
    इश्क वालों से सहा जाता नहीं.

    बेहतरीन शायरी।
    बधाई!

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  3. चापलूसी,बेईमानी,और दगा,
    ऐसा कोई फ़न मुझे आता नहीं

    बहुत खूबसूरत

    वीनस केसरी

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  4. हाँ !!ये फ़न जबतक नही आता, तभी तक 'सच ' में आप लिख पाते हैं //पाएँगे ..!वरना , इस्क़दर सच्ची बात , जिसे नाकारा नही जा सकता , जिसके बारेमे दो राय हो नही सकती ...क्या आप लिख पाएँगे ? या हम सब उसे एकसाथ मान पाएँगे ?
    आप से माफ़ी चाहती हूँ, कभी,कभी हालात ऐसे बन जाते हैं, कि, केवल 'comment moderation' के लिए चंद पल ब्लॉग पे आ पाती हूँ..!

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  5. बात हो सकता है के ये कडवी लगे,
    क्या करूं मैं,झूठं बोला जाता नहीं.


    दिल तो करता है तुम्हें सम्मान दूं,
    मेरी फ़ितरत को मगर भाता नहीं.


    कैसे बैठूं मैं तुम्हारी महफ़िल में,
    जब तुम से सच मेरा सहा जाता नहीं.
    ye teen she'r aapki rachna me sabase jyada prabhavi lage/
    bahut achha likhte he aap/ meri aatmiya shubhkamanaye he aapke saath/

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