Tuesday, July 7, 2009

अरमान



रूठना वो तेरा ऐसे,
कहीं कुछ टूट गया हो जै
से.



बहुत बेरंग हैं आज शाम के रंग,
इंद्रधनुष टूट गया हो जैसे.


वो मेरे अरमान तमाम बिखरे हुए,
शीशा कोई छूट गया हो जैसे.


बात बहुत सीधी थी और कह भी दी
तू मगर भूल गया हो जैसे.


कहते कहते यूँ तेरा रुक जाना,
साजिंदा रूठ गया हो जैसे.


6 comments:

  1. नाजुक भाव से सजी कविता.............बहुत ही खुब

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  2. आप का स्वागत है, धन्यवाद!

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  3. आपने वादा किया था "बहर में लिखने का प्रयास करूंगा" मगर वो प्रयास कही दिखाई नहीं दे रहा :(

    वीनस केसरी

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  4. प्रिय वीनस,
    अब इसके सिवा क्या कहूं के:

    ’वो मेरे लफ़्ज़ पकडते हैं,जज़बातों पे नहीं जाते,
    मैं करूं क्या के मुझे अफ़साने बनाने नहीं आते.’

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  5. Ye rachna pahle padhee to thee,lekin comment post nahee hua tha...!
    Aapki behtareen rachnaon me se ye ek hai...!

    http://shamasansamaran.blogspot.com

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Please feel free to express your true feelings about the 'Post' you just read. "Anonymous" Pl Excuse Me!
बेहिचक अपने विचारों को शब्द दें! आप की आलोचना ही मेरी रचना को निखार देगी!आपका comment न करना एक मायूसी सी देता है,लगता है रचना मै कुछ भी पढने योग्य नहीं है.So please do comment,it just takes few moments but my effort is blessed.