Friday, January 29, 2010

मुगाल्ते

मै नहीं मेरा अक्स होगा,
जिस्म नही कोई शक्स होगा.

ख्वाहिशें बेकार की है,
पानी पे उभरा अक्स होगा.

ज़िन्दगी अब और क्या हो,
आंखों में तेरा नक्श होगा.

गल्तियां मेरी हज़ारों,
तू ही खता बख्श होगा.

Sunday, January 24, 2010

मजाक सच में

हालात से लोग मजबूर हो गये है,
निवाले उनके मुंह से दूर हो गये है.

इस कदर इस बात पे न ज़ोर डालो ,
नज़र दुरुस्त है,चश्मे चूर हो गये है

रोशनी ही बेच दी रोटी की खातिर,
तमाम चराग यहां बे नूर हो गये है

हाकिमों ने खुद ही आंखें मींच ली है,
ये सारे कातिल बे कूसूर हो गये है.



Friday, January 15, 2010

अपनी कहानी ,पानी की ज़ुबानी !

आबे दरिया हूं मैं,ठहर नहीं पाउंगा,
मेरी फ़ि्तरत भी है के, लौट नहीं आउंगा. 


जो हैं गहराई में, मिलुगां  उन से जाकर ,
तेरी ऊंचाई पे ,मैं पहुंच नहीं पाउंगा।


दिल की गहराई से निकलुंगा ,अश्क बन के कभी,
बदद्दूआ बनके  कभी, अरमानों पे फ़िर जाउंगा।


जलते सेहरा पे बरसुं, कभी जीवन बन कर,
सीप में कैद  हुया ,तो मोती में बदल जाउंगा।


मेरी आज़ाद पसन्दी का, अश्क है एक सबूत,
खारा हो के भी, समंदर नहीं कहलाउंगा।


मेरी रंगत का फ़लसफा भी अज़ब है यारों,
जिस में डालोगे, उसी रंग में ढल जाउंगा।