Thursday, April 15, 2010

घर और वफ़ा!

मोहब्बतों से घरों को दुआयें मिलतीं हैं,
जो सच्चे लोग हैं उनको वफ़ायें मिलतीं है|

दर्द मिलने पे भी मुस्कुरा कर देखो!
रोने वालो को कडवी दवायें मिलती है|

कभी बीवी को भी वो ही सम्मान तो दो,
एक दम मां वाली दुआयें मिलती हैं|

उन के किरदार में ही कुछ कमी होगी,
कैसे लोग हैं जिन्हें घर से ज़फ़ायें मिलती है?



14 comments:

  1. मोहब्बतों से घरों को दुआयें मिलतीं हैं,
    जो सच्चे लोग हैं उनको वफ़ायें मिलतीं है|
    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! बिलकुल सही फ़रमाया है आपने! बहुत खूब!

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  2. उन के किरदार में ही कुछ कमी होगी,
    कैसे लोग हैं जिन्हें घर से ज़फ़ायें मिलती है?

    bahut sundar rachna

    acha laga pad kar

    shekhar kumawat

    http://kavyawani.blogspot.com/

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  3. बहुत ही खुबसूरत लिखा है. इन पंक्तियों ने दिल को छू लिया.

    कभी बीवी को भी वो ही सम्मान तो दो,
    एक दम मां वाली दुआयें मिलती हैं|

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  4. आपकी रचना की चर्चा यहाँ भी की गई है-

    http://charchamanch.blogspot.com/2010/04/blog-post_6838.html

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  5. बहुत सुन्दर ग़ज़ल है ! खास कर ये शेर बहुत अच्छा लगा ....
    दर्द मिलने पे भी मुस्कुरा कर देखो!
    रोने वालो को कडवी दवायें मिलती है|

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  6. मोहब्बतों से घरों को दुआयें मिलतीं हैं,
    जो सच्चे लोग हैं उनको वफ़ायें मिलतीं है|

    Bahut khoob....!!

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  7. bahut hi khubsurat
    aur mein sirf do panktiya nahi bata ki kaun si zyada achhi hai mujhe to puri me hi kuch khaas nazar aata hai

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  8. दर्द मिलने पे भी मुस्कुरा कर देखो!
    रोने वालो को कडवी दवायें मिलती है|
    bahut achhe...
    behtareen rachna ke liye badhai...
    regards
    shekhar

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  9. "मोहब्बतों से घरों को दुआयें मिलतीं हैं,
    जो सच्चे लोग हैं उनको वफ़ायें मिलतीं है|"

    सच में?

    आज सहमत नहीं हूं आपसे।

    रचना बहुत अच्छी है आपकी, मेरी असहमति को नापसंद नहीं समझेंगे, यकीन है।

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