फ़लक पे झूम रही सांवली घटायें हैं,
बदलियां हैं या, ज़ुल्फ़ की अदायें हैं।
बुला रहा है उस पार कोई नदिया के,
एक कशिश है या, यार की सदायें हैं।
बूटे बूटे में नज़र आता है तेरा मंज़र,
मेरी दीवानगी है, या तेरी वफ़ायें हैं।
याद तेरी मुझे दीवानवर बनाये है,
ये ही इश्क है,या इश्क की अदायें हैं।
दिल तो मासूम है, कि तेरी याद में दीवाना है,
असल में तो न घटा है, न बदली, न हवायें हैं!
बूटे बूटे में नज़र आता है तेरा मंज़र,
ReplyDeleteमेरी दीवानगी है, या तेरी वफ़ायें हैं।
बहुत सुन्दर रचना
एक सलाह रचना में कई रंग डालने से बचें (अन्यथा न लें)
द्वैत और अद्वैत की चर्चा, साहब, सिर्फ़ दो ही तो रंग डालता हूं, और दोनों लहू के, यानि कि "लहू के दो रंग"! अच्छी सलाह अमल करुंगा!
ReplyDeleteपढने में दिक्कत हो रही थी इसलिये यह सलाह दिया था. उम्मीद है अन्यथा नहीं लिया होगा.
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत खूब !!
ReplyDeleteबहुत खूब ...
ReplyDeleteबूटे बूटे में नज़र आता है तेरा मंज़र,
ReplyDeleteमेरी दीवानगी है, या तेरी वफ़ायें हैं।... waah
उम्दा है
ReplyDeleteवाह वाह्……………बहुत सुन्दर अल्फ़ाज़ और भाव्।
ReplyDeleteफ़लक पे झूम रही सांवली घटायें हैं,
ReplyDeleteबदलियां हैं या, ज़ुल्फ़ की अदायें हैं ..
Bahut khoob ... lajawaab sher nikaale hain kathin matle par ...
Bhai ....Maza aa gaya. Bahut hi Umda...Bahut hi Khoobsurat.
ReplyDeleteAApki nehnat safal ho gai Ji.......
आप लोगों की मोहब्बत है, जो आम से लफ़्ज़ों को ,’शेर’ और ’गज़ल’बना देती है!तहे-दिल से शुक्रिया!आप सब सुधी पाठकों का!
ReplyDeletebahut sundar rachana hai likhte rahiye.taki ham padhte rahe
ReplyDeletekhubsurat.. baar baar padhne ko jee chahta hai.
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