Thursday, November 4, 2010
गंगा!! कौन?
हरि पुत्री बन कर तू उतरी
माँ गंगा कहलाई,
पाप नाशनी,जीवन दायनी
जै हो गंगा माई!
भागीरथी,अलकनंदा,हैं
नाम तुम्हारे प्यारे,
हरिद्वार में तेरे तट पर
खुलते हरि के द्वारे!
निर्मल जल
अमृत सा तेरा,
देह प्राण को पाले
तेरी जलधारा छूते ही
टूटें सर्वपाप के ताले!
माँ गंगा तू इतनी निर्मल
जैसे प्रभु का दर्शन,
पोषक जल तेरा नित सींचे
भारत माँ का आंगन!
तू ही जीवन देती अनाज में
खेतों को जल देकर,
तू ही आत्मा को उबारती
देह जला कर तट पर!
पर मानव अब
नहीं जानता,खुद से ही क्यों हारा,
तेरे अमृत जैसे जल को भी
कर बैठा विषधारा!
माँ का बूढा हो जाना,
हर बालक को खलता है,
प्रिय नहीं है,सत्य मगर है,
जीवन यूंही चलता है!
हमने तेरे आँचल में
क्या क्या नहीं गिराया,
"गंगा,बहती हो क्यूं?"भी पूछा,
खुद का दोष न पाया!
डर जाता हूं सिर्फ़ सोच कर,
क्या वो दिन भी आयेगा,
गंगाजल मानव बस जब,
माँ की आँखो में ही पायेगा!
12 comments:
Please feel free to express your true feelings about the 'Post' you just read. "Anonymous" Pl Excuse Me!
बेहिचक अपने विचारों को शब्द दें! आप की आलोचना ही मेरी रचना को निखार देगी!आपका comment न करना एक मायूसी सी देता है,लगता है रचना मै कुछ भी पढने योग्य नहीं है.So please do comment,it just takes few moments but my effort is blessed.
bahut hi sundar rachna...
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को दिवाली की शुभकामनाएं..
मेरे ब्लॉग पर इस बार संगीता जी की रचना..
सुनहरी यादें :-३ ...
ganga ma par pavitra rachna
ReplyDeleteshubh deepawali
बहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteदीपावली कि हार्दिक शुभकामनाये
गंगा की ही तरह पवित्र आपके विचार है !
ReplyDeleteदीपावली की आपको बहुत बहुत शुभकामनाये .............
सराहनीय लेखन........
ReplyDelete+++++++++++++++++++
चिठ्ठाकारी के लिए, मुझे आप पर गर्व।
मंगलमय हो आपके, हेतु ज्योति का पर्व॥
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
सराहनीय लेखन........
ReplyDelete+++++++++++++++++++
चिठ्ठाकारी के लिए, मुझे आप पर गर्व।
मंगलमय हो आपके, हेतु ज्योति का पर्व॥
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
बहुत बहुत सुन्दर.....
ReplyDeleteदीपावली कि हार्दिक शुभकामनाये
GANGA!!KAUN? "bahut sundar likha hai apne" meine apki yeh pehli rachna padhi hai..meri taraf se aur sabne jisne is rachna ko pada hai.."itni uttam rachna ke liye".. apko bahut bahut badhai.
ReplyDelete@प्रीति जी,
ReplyDeleteआपने मेरी रचना पहली बार पढी और आपको पसंद आई ,लिखना सकारथ हुया!दरसल शब्द कविता बनते ही तब है, जब श्रोता/पाठक,अपनी भावनायें उनमें प्रतिबिम्बित पाते हैं!
आपका दिल से धन्यवाद "सच में" पर आने और विचार व्यक्त करने के लिये।
माँ गंगा तू इतनी निर्मल
ReplyDeleteजैसे प्रभु का दर्शन,
पोषक जल तेरा नित सींचे
भारत माँ का आंगन ...
माँ गंगा को हमारा भी नमन ,.....
Bahut savendansheel panktiya.
ReplyDeleteBahut savendansheel panktiya.
ReplyDelete