Saturday, November 20, 2010

बेउन्वान!

एक पुरानी रचना

पलकें नम, थी मेरी
घास पे शबनम की तरह.
तब्बसुम लब पे सजा था
किसी मरियम की तरह|

वो मुझे छोड गया था
संगे राह समझ
मै उसके साथ चला
हर पल हमकदम की तरह|


फ़रिस्ता मुझको समझ के ,
वो आज़माता रहा,
मैं तो कमज़ोर सा इंसान
था आदम की तरह|



ख्वाब जो देके गया ,
वो बहुत हंसी है मगर,
तमाम उम्र कटी मेरी
शबे गम की तरह।



15 comments:

  1. उपेन्द्र जी, आपका शुक्रिया!आपने पसंद किया!

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  2. "bahut achha likha hai!"

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  3. फ़रिस्ता मुझको समझ के ,
    वो आज़माता रहा,
    मैं तो कमज़ोर सा इंसान
    था आदम की तरह ...

    आदमी कभी कमजोर नहीं होता .. बस ये हालात उसे कमजोर कर देते हैं ....
    बहुत प्रभावी रचना है ... लाजवाब ...

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  4. दिगम्बर जी, आप मेरे विचार से इत्तेफ़ाक रखते है, अच्छा लगा!शुक्रिया!

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  5. achhi rachna
    hai aapki

    kabhi yaha bhi aaye
    www.deepti09sharma.blogspot.com

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  6. रचनायें भी कभी पुरानी होती हैं भला....

    वो मुझे छोड गया था
    संगे राह समझ
    मै उसके साथ चला
    हर पल हमकदम की तरह|

    मेरा एक जख्म हरा हो गया ये पढ़कर... बहुत ही गहरे शब्द...

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  7. शुक्रिया शेखर जी,

    आपकी नज़र एक और शेर आपके comment के ताल्लुक से:

    "शेर सुनना हो जब भी नये रगं का,
    मुझको यादों का नस्तर चुभा दीजिये!"

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  8. बहुत सुन्दर सहज सरल अभिव्यक्ति !

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  9. पलकें नम, थी मेरी
    घास पे शबनम की तरह.
    तब्बसुम लब पे सजा था
    किसी मरियम की तरह|
    Kya gazab kee panktiyan hain!!

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  10. शमा जी,
    एक लम्बे समय के बाद आपका आना हुया ’सच में’ पर शुक्रिया!

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  11. दिल की बात कही है आपने। ज्यादा कुछ नहीं कह पा रहा हूं।

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  12. bahut khoob
    bahut hi achhi nazm,har sher tarrif
    ke layak ,bahut hi sundar bhauo se purn---------.

    ख्वाब जो देके गया ,
    वो बहुत हंसी है मगर,
    तमाम उम्र कटी मेरी
    शबे गम की तरह।
    poonam

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  13. हरएक शेर लाजवाब है..

    "हमकदम जिसके थे हम

    चार कदम चल कर बोला

    अब तेरा रास्ता अलग

    और मेरा रास्ता अलग"
    (ये मेरा शेर है)
    शुक्रिया !!!!

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