Thursday, January 6, 2011

तमन्ना

ज़ख्म मेरा गुलाब हो जाये,
अँधेरा माहताब हो जाये,
कैसी कैसी तमन्नायें हैं मेरी,
ये जहाँ बस्ती-ए-ख्वाब हो जाये।

तू कभी मुझको आके ऎसे मिल,
मेरा पानी शराब हो जाये,
मेरी नज़रो में हो वो तासीर,
तेरे रुख पे हिज़ाब हो जाये।

जो भी इन्सान दर्द से मूहँ मोडे,
उसका खाना खराब हो जाये।
रोज़-ए-महशर का इन्तेज़ार कौन करे,
अब तो ज़ालिमों का हिसाब हो जाये!

18 comments:

  1. अच्छी रचना !नव वर्ष की बधाई हो

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  2. तू कभी मुझको आके ऎसे मिल,
    मेरा पानी शराब हो जाये,
    मेरी नज़रो में हो वो तासीर,
    तेरे रुख पे हिज़ाब हो जाये।
    bahut hi khoob

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  3. बहुत खूब ..हर शब्‍द लाजवाब ।

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  4. ज़ख्म मेरा गुलाब हो जाये,
    अँधेरा माहताब हो जाये,
    कैसी कैसी तमन्नायें हैं मेरी,
    ये जहाँ बस्ती-ए-ख्याब हो जाये।
    ...लाजवाब रचना !
    नव वर्ष की बधाई

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  5. अब तो ज़ालिमों का हिसाब हो जाये!

    बढिया है जी.

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  6. मेरी नज़रो में हो वो तासीर,
    तेरे रुख पे हिज़ाब हो जाये।
    वाह!

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  7. तू कभी मुझको आके ऎसे मिल,
    मेरा पानी शराब हो जाये,
    मेरी नज़रो में हो वो तासीर,
    तेरे रुख पे हिज़ाब हो जाये ...

    खूबसूरती में डूब कर लिखी खूबसूरत नज़्म ....
    क्या अदायगी है मुहब्बत की ... हर शे खूबसूरत हो रही है ...

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  8. bahut bahut achhi gazal badhai ke saathsaath nav -varshh par hardik abhi nandan.
    तू कभी मुझको आके ऎसे मिल,
    मेरा पानी शराब हो जाये,
    मेरी नज़रो में हो वो तासीर,
    तेरे रुख पे हिज़ाब हो जाये।
    bahut achhi lagin ye panktiyan
    poonam

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  9. सबसे खूबसूरत ये पंक्तियां लगीं,
    "तू कभी मुझको आके ऎसे मिल,
    मेरा पानी शराब हो जाये,
    मेरी नज़रो में हो वो तासीर,
    तेरे रुख पे हिज़ाब हो जाये।"

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  10. thought provoking - yaarab zaalimo ka jaldi hisaab ho jaaye - very nice

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  11. "रोज़-ए-महशर का इन्तेज़ार कौन करे,
    अब तो ज़ालिमों का हिसाब हो जाये!"

    बहुत खूब
    सुन्दर ग़ज़ल
    बधाई
    आभार

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  12. Gantantr Diwas kee dheron shubhkamnayen!

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  13. बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...

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