मौसम-ए-गुल!
मौसमें गुल है और हर तरफ़ खुमारी है,
सरे आम क्या कहूँ,बात मेरी तुम्हारी है।
गुलो ने पैगाम दिया है बसंत आने का,
तितलियों ने फ़िज़ा की आरती उतारी है।
न बताओ मुझे कि मंज़िलें हैं दूर अभी ,
मैं निकल पडा हूँ,और मेरा सफ़र जारी है।
गमे दुनियाँ भी हैं शामिल जाम मे मेरे,
अभी फ़िलहाल तो मौसम का नशा तारी है।
मौसमें गुल है और हर तरफ़ खुमारी है,
ReplyDeleteसरे आम क्या कहूँ,बात मेरी तुम्हारी है।
waah
Sunder prastuti k liye badhai
ReplyDeletewAAH-Waah!
ReplyDeletebahut khoob
gul bhi hai guljaar bhi hai
manjil hai dur par mousme bahaar bhi
itna sab kuchh saath hai to
nashhe ki khumaari abhi utregi der se hi.
bahut badhiya lagi prastuti---
poonam
मंजिल पा लेना बहुतों के लिये सबकुछ होता होगा, लेकिन सफ़र जारी रहे ये भी छोटी बात नहीं। बल्कि अपनी प्राथमिकता मंजिल से ज्यादा सफ़र की ही है। बहुत अच्छी गज़ल लगी। शुक्रिया।
ReplyDeleteThe poem is sounding like romantic one. But a good poem.
ReplyDelete.
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shilpa
"न बताओ मुझे कि मंज़िलें हैं दूर अभी ,
ReplyDeleteमैं निकल पडा हूँ,और मेरा सफ़र जारी है।"
सच में सफ़र तो जरी है.....
सुन्दर...बहुत सुन्दर..!!
"न बताओ मुझे कि मंज़िलें हैं दूर अभी ,
ReplyDeleteमैं निकल पडा हूँ,और मेरा सफ़र जारी है।"
सच में सफ़र तो ज़ारी है.....
सुन्दर...बहुत सुन्दर..!!
२८ फरवरी २०११ १:०७ पूर्वाह्न
aap ne bahut hi sundar rachna likhi hai,saral aur saade shabadon me....
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