Saturday, May 7, 2011

मै और मेरी तिश्‍नगी!




मेरी तिश्‍नगी ने मुझको ऐसा सिला दिया है,
बरसात की बूँदों ने ,मेरा घर जला दिया है।

मैने जब भी कभी चाहा, मेरी नींद संवर जाये,
ख्वाबों ने मेरे आके ,मुझको जगा दिया है।

मेरी किस खता के बदले,मुझे ऐसी खुशी मिली है,
मेरी आँख फ़िर से नम है,मेरा दिल भरा भरा है।

मै अकेला यूँ ही अक्सर, तन्हाइयों में खुश था,
तूने  मेरे पास आ के, मुझको फ़ना किया है।

जो खुशी मुझे मिली है, इसे मैं कहाँ सजाऊँ,
कहीं जल न जाये दामन, मेरा दिल डरा डरा है।



10 comments:

  1. मै अकेला यूँ ही अक्सर, तन्हाइयों में खुश था,
    तूने मेरे पास आ के, मुझको फ़ना किया है।

    waah... bahut badhiyaa

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  2. मेरी तिश्‍नगी ने मुझको ऐसा सिला दिया है,
    बरसात की बूँदों ने ,मेरा घर जला दिया है।

    मैने जब भी कभी चाहा, मेरी नींद संवर जाये,
    ख्याबों ने मेरे आके ,मुझको जगा दिया है।

    बहुत बढ़िया....

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  3. मैने जब भी कभी चाहा, मेरी नींद संवर जाये,
    ख्याबों ने मेरे आके ,मुझको जगा दिया है।

    वाह, क्या शेर कहा है ... शुभानल्लाह !

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  4. e-mail से शमा जी (Shama K ) ने कहा:

    गज़ब की रचना है! ब्लॉग पे कई बार कोशिश की मगर कमेन्ट पोस्ट नही हुआ!

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  5. जो खुशी मुझे मिली है, इसे मैं कहाँ सजाऊँ,
    कहीं जल न जाये दामन, मेरा दिल डरा डरा है।


    बहुत खूब

    http://rimjhim2010.blogspot.com/2011/05/happy-mothers-day.html

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  6. kshama sadhana Ji ने e-mail से कहा:


    बेहतरीन शब्दों से सजी रचना!
    ब्लॉग खुलते ही बंद हो जा रहा है...ब्लॉग पे कमेन्ट नही दे पा रही हूँ! माफी चाहती हूँ!

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  7. sundar gazal.. aur shbad chayan bhi anukool... achha laga aapke blog me aakar.. Sadar

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  8. वाह, क्या शेर कहा है|धन्यवाद|

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  9. जो खुशी मुझे मिली है, इसे मैं कहाँ सजाऊँ,
    कहीं जल न जाये दामन, मेरा दिल डरा डरा है।

    बहुत ख़ूब!

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  10. मर्ज ही ऐसा है साहब, जो दर्द है वही दवा है, इसीलिये ये सब हो रहा है।

    बहुत खूब लिखा है एक एक शेर।

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