Tuesday, August 16, 2011

वीराने का घर



लोग बस गये जाकर  वीराने में,
सूना घर हूँ मैं बस्ती में रह जाउँगा।

तुम न आओगे चलों यूँ ही सही,
याद में तो मैं तुम्हारी आऊँगा।

पी चुका हूँ ज़हर मैं तन्हाई का,
पर चारागर कहता है,के बच जाउँगा।

कह दिया तुमने जो तुम्हें अच्छा लगा,
सच बहुत कडवा है,मैं न कह पाउँगा।

तुमको लगता है कि मैं बरबाद हूँ,
आइना रोज़े महशर तुम्हें दिखलाऊँगा।

13 comments:

  1. कह दिया तुमने जो तुम्हें अच्छा लगा,
    सच बहुत कडवा है,मैं न कह पाउँगा।

    तुमको लगता है कि मैं बरबाद हूँ,
    आइना रोज़े महशर तुम्हें दिखलाऊँगा।
    ...दिल तक पहुँचते ख्याल

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  2. तुम न आओगे चलों यूँ ही सही,
    याद में तो मैं तुम्हारी आऊँगा

    क्या खूबसूरत उलाहना है !

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  3. On Facebook
    Sanjeev Sharma likes this.

    Sanjeev Sharma ऊम्दा लिखा है हुज़ूर. सच मे!
    16 hours ago · Like

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  4. "कह दिया तुमने जो तुम्हें अच्छा लगा,
    सच बहुत कडवा है,मैं न कह पाउँगा।"
    आपने तो हर दिल कि बात कह दी.बहुत सुन्दर भाव.

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  5. पी चुका हूँ ज़हर मैं तन्हाई का,
    पर चारागर ये कहता है, बच जाउँगा।
    Gazab kee panktiyan hain!

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  6. बहुत सुन्दर ! शुभकामनायें !

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  7. तुम न आओगे चलों यूँ ही सही,
    याद में तो मैं तुम्हारी आऊँगा।

    बहुत बढ़िया !

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  8. sach me.
    bahut hibehtreen gazal sachchai ki jhalak milti ho jime vahi to pasand sabhi ki hai.bahut hi sundar
    bahut bahut badhai
    poonam

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  9. कह दिया तुमने जो तुम्हें अच्छा लगा,
    सच बहुत कडवा है,मैं न कह पाउँगा।

    bestone...

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  10. "कह दिया तुमने जो तुम्हें अच्छा लगा,
    सच बहुत कडवा है,मैं न कह पाउँगा।"

    सच कडवा ही होता है और अक्सर देख गया है कि--

    "जो कहते हैं कि वो हैं सच्चाई पसंद
    अपनी सच्चाई से खुद मोड़ के वो बैठे हैं !
    दूसरों को उनकी सच्चाई का आइना दिखाने वाले
    खुद उनको आइना दिखाओ तो खफा होते हैं !!"

    खूब कही आपने......
    शुक्रिया...!!

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  11. नमस्कार जी,
    ये कविता बहुत पसंद आयी है......!

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  12. तुमको लगता है कि मैं बरबाद हूँ,
    आइना रोज़े महशर तुम्हें दिखलाऊँगा।
    baht khub

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