Friday, May 31, 2013

बुत और खुदा!

तपन हुस्‍न की कब ता उम्र रही है कायम,
मेरे सब्र की ज़मीं ने हर मौसम को बदलते देखा है।

अब ऐसी नींद भी खुदा किसी को न अता करे,

मैंने अक्सर अपनी रुह को ख्वाबों में जलते देखा है।

वख़त बुरा आये तो कभी दोस्तों को मत ढूँडो,
अँधेरी रात में कभी,साये को साथ देखा है?


हर चमकती सुबह को स्याह रात में ढलते देखा है,
हमने अपने खुदाओ को अक्सर बुत में बदलते देखा है।