Sunday, June 30, 2013

केदारनाथ की जय हो!


"मैं तो नूर बन के तेरे दीदों में रहता था,
तोड दीं जो तूने उन उम्मीदों में रहता था!"

"जब तक पूजते रहे तो पत्थर में भी खुदा थे,
जब से बिके बाज़ार में,शिव पत्थर के हो गये!

"जब ज़र्रे ज़र्रे में मैं हूँ तो पत्थर में क्यों नहीं,
अज़ाब* भी तो मेरा रंग है,मेरे घर में क्यूँ नहीं?

और एक नज़र हकीम ’नासिर’ साहिब के दो शेर जो केदारनाथ धटनाक्रम पर सटीक बात कहते नज़र आते हैं

I hope Kedarnath (भगवान केदारनाथ) is listening too,
"पत्थरों आज मेरे सर पे बरसते क्यूँ हो,
मैंने तुम को भी कभी अपना खुदा रक्खा है।"

And for the victims at Kedarnath
"पी जा अय्याम की तल्खी को भी हँस के ’नासिर’
ग़म को सहने में भी कुदरत ने मज़ा रक्खा है!"
************************************
* अज़ाब = पीड़ा, सन्ताप, दंड

5 comments:

  1. मुश्किल दौर है लेकिन इससे गुजरना तो है ही।

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  2. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती आभार ।

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  3. आप सुधिजनों का आभार।

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  4. साम्योक शेर कहे हैं ...
    बहुत खूब ...

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बेहिचक अपने विचारों को शब्द दें! आप की आलोचना ही मेरी रचना को निखार देगी!आपका comment न करना एक मायूसी सी देता है,लगता है रचना मै कुछ भी पढने योग्य नहीं है.So please do comment,it just takes few moments but my effort is blessed.