Tuesday, November 11, 2014

एक दिन

एक दिन
दोपहर बीते
आना!
नहीं शाम को,
नहीं,
तब तो मैं
होश में आ चुका होता हूँ।

सारे मिथक,
और सच
उजागर कर दूँगा,
बे हिचक!

हाँ मगर,
अकेले नहीं!
साथ में हो तुम्हारे,
सारे झूठ ,
वो भी
एकदम
नंग धडंग
जैसे पैदा हुये थे वो!

12 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (12-11-2014) को "नानक दुखिया सब संसारा ,सुखिया सोई जो नाम अधारा " चर्चामंच-1795 पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. आपका और प्रतिष्ठित मंच का आभार!

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    1. पसंद करने के लिये आपका बहुत बहुत आभार. "सच में" पर आते रहिये!

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  3. उनको आइना दिखाना है शायद ...

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    1. क्या पता? दिगम्बर भाई, आज कल झूठ भी मूँह चिढा कर चले जाते हैं!

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  4. बहुत सुन्दर बधाई
    मैन भी ब्लोग लिखता हु और आप जैसे गुणी जनो से उत्साहवर्धन की अपेक्षा है
    http://tayaljeet-poems.blogspot.in/

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  5. I don’t know how should I give you thanks! I am totally stunned by your article. You saved my time. Thanks a million for sharing this article.

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Please feel free to express your true feelings about the 'Post' you just read. "Anonymous" Pl Excuse Me!
बेहिचक अपने विचारों को शब्द दें! आप की आलोचना ही मेरी रचना को निखार देगी!आपका comment न करना एक मायूसी सी देता है,लगता है रचना मै कुछ भी पढने योग्य नहीं है.So please do comment,it just takes few moments but my effort is blessed.