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Wednesday, April 1, 2009

उसका सच!

मुझे लग रहा है,पिछले कई दिनों से ,
या शायद, कई सालों से,

कोई है, जो मेरे बारे में सोचता रहता है,

हर दम,

अगर ऐसा न होता ,
तो कौन है जो, मेरे गिलास को शाम होते ही,
शराब से भर देता है।

भगवान?

मगर, वो ना तो पीता है,
और ना पीने वालों को पसंद करता है ,
ऐसा लोग कह्ते हैं,

पर कोई तो है वो !


कौन है वो, जो,
प्रथम आलिगंन से होने वाली अनुभुति 
से मुझे अवगत करा गया था।

मेरे पिता ने तो कभी इस बारे में मुझसे बात ही नहीं की,

पर कोई तो है, वो!

कौन है वो ,जो 
मेरी रोटी के निवाले में,
ऐसा रस भर देता है,
कि दुनियां की कोई भी नियामत,
मुझे वो स्वाद नहीं दे सकती।
पर मैं तो रोटी बनाना जानता ही नही

कोई तो है ,वो!

कौन है वो ,जो,
उन तमाम फ़ूलों के रगं और गंध को ,
बदल देता है,
कोमल ,अहसासों और भावनाओं में।

मेरे माली को तो साहित्य क्या, ठीक से हिन्दी भी नहीं आती।

कोई तो है ,वो,

वो जो भी है,
मैं जानता हूं, कि,
एक दिन मैं ,
जा कर मिलु्गां उससे,
और वो ,हैरान हो कर पूछेगा,


क्या हम, पहले भी ,कभी मिलें हैं?




 

Saturday, March 28, 2009

किरदार का सच!

मेरी तकरीबन हर रचना का,
 एक "किरदार" है,
वो बहुत ही असरदार है,
पर इतना बेपरवाह ,
कि जानता तक नहीं,
कि 'साहित्य' लिखा जा रहा है,

 'उस पर'

मेरे लिये भी अच्छा है,
क्यों कि जिस दिन,
वो जान गया कि,
मैं लिख देता हूं,

 'उस पर'

मेरी रचनाओं में सिर्फ़ 
शब्द ही रह जायेगें।

क्यों कि सारे भाव तो ,
'वो' अपने साथ लेकर जायेगा ना!

शर्माकर? 

या शायद,

घबराकर!!!!  


Thursday, March 19, 2009

बचपन की बातें!

मेरे बचपन में,
मेरे सबसे अच्छे दोस्त ने,
मुझसे पूछा,
क्या मै सुन्दर हूं ?
मैने कहा हां! मगर क्यों?
उसने कहा । यूं ही!

मैनें कहा, ओके.

मेरे बचपन में,
मेरे सबसे अच्छे दोस्त ने,
मुझसे पूछा,
क्या मैं ताकतवर हूं?
मैने कहा हां! आखिर क्यों?
उसने कहा यूं ही!

मैनें कहा। ऒके.

अभी हाल में एक  दिन ,

मेरे बचपन के सबसे  अच्छे दोस्त ने, मुझसे पूछा,
क्या अब मैं तुम से ज्यादा 'सुन्दर,अमीर और ताकतवर हूं?'

मैं चुप रहा!

मेरे दोस्त ने  कहा ! ऒके!!!!!!!!!
 



     

Sunday, February 8, 2009

"झूंठ के पावं"


वो देखो दौड़ के मंज़िल पे जा पहुँचा,
कौन कहता है के,'झूंठ के पावं' नही होते.

मैं चीख चीख के सब को बताता रह गया,
फिर ना कहना,'दीवारों के भी कान' होते हैं.

सारे हाक़िम लपक कर उसके पावं छू आए,
तब मैं जान गया,'क़ानून के हाथ' लंबे हैं.