धन और सम्पदा,
आपको
आसानी से मरने नहीं देगी ,
सच है.
परन्तु
सच ये भी है,
कि,
यह आप को,
आसानी से,
जीने भी नहीं देगी!
अब थरूर और मोदी को ही ले लो!
ये सब हैं चाहने वाले!और आप?
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Monday, April 19, 2010
Thursday, April 15, 2010
घर और वफ़ा!
मोहब्बतों से घरों को दुआयें मिलतीं हैं,
जो सच्चे लोग हैं उनको वफ़ायें मिलतीं है|
दर्द मिलने पे भी मुस्कुरा कर देखो!
रोने वालो को कडवी दवायें मिलती है|
कभी बीवी को भी वो ही सम्मान तो दो,
एक दम मां वाली दुआयें मिलती हैं|
उन के किरदार में ही कुछ कमी होगी,
कैसे लोग हैं जिन्हें घर से ज़फ़ायें मिलती है?
जो सच्चे लोग हैं उनको वफ़ायें मिलतीं है|
दर्द मिलने पे भी मुस्कुरा कर देखो!
रोने वालो को कडवी दवायें मिलती है|
कभी बीवी को भी वो ही सम्मान तो दो,
एक दम मां वाली दुआयें मिलती हैं|
उन के किरदार में ही कुछ कमी होगी,
कैसे लोग हैं जिन्हें घर से ज़फ़ायें मिलती है?
Saturday, April 10, 2010
शायद इसी लिये!
तेरे थरथराते कांपते होठों पर,
मैंने कई बार चाहा कि,
अपनी नम आंखे,
रख दूं!
पर,
तभी बेसाख्ता याद आया
भडकती आग पर,
घी नही डाला करते!
मुझे यकीं है के,
तेरे भी ज़ेहन में,
अक्सर आता है,
ये ख्याल के
तू भी,
कभी तो!
मेरे ज़ख्मों पे दो बूंद
अपने आंसुओं की गिरा दे,
पर मैं जानता हूं
के तू भी डरता है,
भडकती आग में
घी डालने से!
मैंने कई बार चाहा कि,
अपनी नम आंखे,
रख दूं!
पर,
तभी बेसाख्ता याद आया
भडकती आग पर,
घी नही डाला करते!
मुझे यकीं है के,
तेरे भी ज़ेहन में,
अक्सर आता है,
ये ख्याल के
तू भी,
कभी तो!
मेरे ज़ख्मों पे दो बूंद
अपने आंसुओं की गिरा दे,
पर मैं जानता हूं
के तू भी डरता है,
भडकती आग में
घी डालने से!
Friday, March 26, 2010
कातिल की बात !
मैं कभी करता नहीं दिल की भी बात,
पूछते हो मुझसे क्यूं,महफ़िल की बात?
दिलनशीं बुतो की परस्तिश तुम करो,
हम उठायेगें, यहां संगदिल की बात।
ज़ालिम-ओ-हाकिम यहां सब एक हैं,
कौन सुनता है यहां बिस्मिल की बात!
कत्ल मेरा क्यों हुया? तुम ही कहो,
मैं जानूं!क्या थी,भला कातिल की बात?
लहर खुद ही तूफ़ां से जाकर मिल गई!
कश्तियां करती रहीं साहिल की बात।
पूछते हो मुझसे क्यूं,महफ़िल की बात?
दिलनशीं बुतो की परस्तिश तुम करो,
हम उठायेगें, यहां संगदिल की बात।
ज़ालिम-ओ-हाकिम यहां सब एक हैं,
कौन सुनता है यहां बिस्मिल की बात!
कत्ल मेरा क्यों हुया? तुम ही कहो,
मैं जानूं!क्या थी,भला कातिल की बात?
लहर खुद ही तूफ़ां से जाकर मिल गई!
कश्तियां करती रहीं साहिल की बात।
Friday, January 15, 2010
अपनी कहानी ,पानी की ज़ुबानी !
आबे दरिया हूं मैं,ठहर नहीं पाउंगा,
मेरी फ़ि्तरत भी है के, लौट नहीं आउंगा.
जो हैं गहराई में, मिलुगां उन से जाकर ,
तेरी ऊंचाई पे ,मैं पहुंच नहीं पाउंगा।
दिल की गहराई से निकलुंगा ,अश्क बन के कभी,
बदद्दूआ बनके कभी, अरमानों पे फ़िर जाउंगा।
जलते सेहरा पे बरसुं, कभी जीवन बन कर,
सीप में कैद हुया ,तो मोती में बदल जाउंगा।
मेरी आज़ाद पसन्दी का, अश्क है एक सबूत,
खारा हो के भी, समंदर नहीं कहलाउंगा।
मेरी रंगत का फ़लसफा भी अज़ब है यारों,
जिस में डालोगे, उसी रंग में ढल जाउंगा।
Friday, December 11, 2009
दर्द का पता!
कल रात मेरी जीवन साथी संजीदा हो गईं,
मेरी कविताएं पढते हुये,
उसने पूछा,
क्या सच में!
आप दर्द को इतनी शिद्द्त से महसूस करते हैं?
या सिर्फ़ फ़लसफ़े के लिये मुद्दे चुन लेतें हैं!
दर्द की झलक जो आपकी बातों में है,
वो आई कहां से?
मैने भी खूबसूरती से टालते हुये कहा,
दर्द खजाने हैं,इन्हें छुपा कर रखता हूं,
कभी दिल में,कभी दिल की गहराईओं में
खजानों का पता गर सब को बताता,
तो अब तक कब का लुट गया होता!
मेरे किसी दोस्त ने कभी बहुत ही सही कहा था!
’ये फ़कीरी लाख नियामत है, संभाल वरना,
इसे भी लूट के ले जायेंगें ज़माने वाले!’
Sunday, November 15, 2009
बेवफ़ाई का सच!
कल मुझे इक खबर ने दुखी कर दिया!
मेरे दोस्त का तलाक हो गया!
आम बात(खबर) है ये आज कल,
पर मेरे दुखी होने की वजह थी,
दोनों ’तलाक शुदा’ व्यक्ति मेरे दोस्त रहे थे!
एक (उनकी) शादी से पहले और एक शादी के बाद!
हांलाकि मैं तलाक की वजह नहीं था!
पर अफ़सोस कि बात ये के
काश उन दोनों मे से ,
कोई एक तो ऐसा होता,
जो मोहब्बत की कद्र कभी तो समझता!
Wednesday, October 28, 2009
सच गुनाह का!
तेरा काजल जो
मेरी कमीज़ के कन्धे पर लगा रह गया था,
अब मुझे कलंक सा लगने लगा है.
क्या मैं ने अकेले ही
जिया था उन लम्हों को?
तो फ़िर इस रुसवाई में,
तू क्यों नही है साथ मेरे!
क्या दर्द के लम्हों से मसरर्त
की चन्द घडियां चुरा लेना गुनाह है,
गर है! तो सज़ा जो भी हो मंज़ूर,
गर नही!तो,
’गुनाह-ए-बेलज़्ज़त, ज़ुर्म बे मज़ा’
कैसा मुकदमा,और क्यूं कर सज़ा?’
मेरी कमीज़ के कन्धे पर लगा रह गया था,
अब मुझे कलंक सा लगने लगा है.
क्या मैं ने अकेले ही
जिया था उन लम्हों को?
तो फ़िर इस रुसवाई में,
तू क्यों नही है साथ मेरे!
क्या दर्द के लम्हों से मसरर्त
की चन्द घडियां चुरा लेना गुनाह है,
गर है! तो सज़ा जो भी हो मंज़ूर,
गर नही!तो,
’गुनाह-ए-बेलज़्ज़त, ज़ुर्म बे मज़ा’
कैसा मुकदमा,और क्यूं कर सज़ा?’
Wednesday, October 14, 2009
बस कह दिया!
चमन को हम साजाये बैठे हैं,
जान की बाज़ी लगाये बैठे हैं.
तुम को मालूम ही नहीं शायद,
दुश्मन नज़रे गडाये बैठे हैं.
सलवटें बिस्तरों पे रहे कायम,
नींदे तो हम गवांये बैठें हैं
फ़ूल लाये हो तो गैर को दे दो,
हम तो दामन जलाये बैठे हैं.
मयकदे जाते तो गुनाह भी था,
बिन पिये सुधबुध गवांये बैठे हैं.
सच न कह्ता तो शायद बेह्तर था,
सुन के सच मूंह फ़ुलाये बैठे हैं.
जान की बाज़ी लगाये बैठे हैं.
तुम को मालूम ही नहीं शायद,
दुश्मन नज़रे गडाये बैठे हैं.
सलवटें बिस्तरों पे रहे कायम,
नींदे तो हम गवांये बैठें हैं
फ़ूल लाये हो तो गैर को दे दो,
हम तो दामन जलाये बैठे हैं.
मयकदे जाते तो गुनाह भी था,
बिन पिये सुधबुध गवांये बैठे हैं.
सच न कह्ता तो शायद बेह्तर था,
सुन के सच मूंह फ़ुलाये बैठे हैं.
Saturday, October 10, 2009
मानव योनि!
चौरासी लाख योनिओं में,
शायद ’प्रेत’योनि भी एक है!
या शायद नहीं है?
पता नही!
पर मैं ये जानता हूं कि,
हर देह धारी मनुष्य
प्रेत योनी का सुख उठा सकता है,
अरे आप तो हैरान हो गये,
प्रेत योनि और सुख?
जी हां!
दर असल ये समझना ज़रूरी है कि,
मानव योनि के कौन कौन से कष्ट है,
जो प्रेत योनि में नहीं होते.
सम्वेदना,लगाव,
स्नेह,विरह,कामना,
ईर्ष्या,स्पर्धा,लालसा,
भय,आवेग,करुणा,
आकांछा,और हां
"सब कुछ सच सच जान लेने की ख्वाहिश"!
ये कुछ ऐसी अजीबो गरीब भावनायें हैं,
जो इन्सान के कष्ट का कारण होती है,
प्रेत योनि में ये दुख कहां,
तभी तो मानव देह धारी हो कर भी,
प्रेत योनि की प्रसंशा करते हुये,
उसी की प्राप्ति की ओर अग्रसर हूं!
Saturday, July 11, 2009
फ़ौर your eyes Only!
Friday, July 10, 2009
मेरा सच
पर खाम्खां सरे आईना यूंहीं जाता नहीं.
चापलूसी,बेईमानी,और दगा,
ऐसा कोई फ़न मुझे आता नहीं.
बात हो सकता है के ये कडवी लगे,
क्या करूं मैं,झूठं बोला जाता नहीं.
दिल तो करता है तुम्हें सम्मान दूं,
मेरी फ़ितरत को मगर भाता नहीं.
कैसे बैठूं मैं तुम्हारी महफ़िल में,
जब तुम से सच मेरा सहा जाता नहीं.
मत दिलाओ दिल को झूठीं उम्मीदें,
इश्क वालों से अब ज़िया जाता नहीं.
जा मरूं मैं दर पे जाके गैर के,
राय अच्छी है,पर किया जाता नहीं.
Tuesday, July 7, 2009
अरमान
रूठना वो तेरा ऐसे,
कहीं कुछ टूट गया हो जैसे.
बहुत बेरंग हैं आज शाम के रंग,
इंद्रधनुष टूट गया हो जैसे.
वो मेरे अरमान तमाम बिखरे हुए,
बात बहुत सीधी थी और कह भी दी
कहते कहते यूँ तेरा रुक जाना,
कहीं कुछ टूट गया हो जैसे.
बहुत बेरंग हैं आज शाम के रंग,
इंद्रधनुष टूट गया हो जैसे.
वो मेरे अरमान तमाम बिखरे हुए,
शीशा कोई छूट गया हो जैसे.
बात बहुत सीधी थी और कह भी दी
तू मगर भूल गया हो जैसे.
कहते कहते यूँ तेरा रुक जाना,
साजिंदा रूठ गया हो जैसे.
Saturday, June 27, 2009
शायद सच हो!
John F. Kennedy was elected to Congress in 1946.
Abraham Lincoln was elected President in 1860.
John F. Kennedy was elected President in 19 60.
Both were particularly concerned with civil rights.
Both wives lost their children while living in the White House.
Both Presidents were shot on a Friday.
Both Presidents were shot in the head.
Now it gets really weird.
Lincoln 's secretary was named Kennedy.
Kennedy's Secretary was named Lincoln .
Both were assassinated by Southerners.
Both were succeeded by Southerners named Johnson.
Andrew Johnson, who succeeded Lincoln , was born in 1808.
Lyndon Johnson, who succeeded Kennedy, was born in 1908.
John Wilkes Booth, who assassinated Lincoln , was born in 1839.
Lee Harvey Oswald, who assassinated Kennedy, was born in 1939.
Both assassins were known by their three names.
Both names are composed of fifteen letters.
Now hang on to your seat.
Lincoln was shot at the theater named 'Ford.'
Kennedy was shot in a car called ' Lincoln ' made by 'Ford.'
Lincoln was shot in a theater and his assassin ran and hid in a warehouse.
Kennedy was shot from a warehouse and his assassin ran and hid in a theater.
Booth and Oswald were assassinated before their trials.
And here's the kicker...
A week before Lincoln was shot, he was in Monroe, Maryland.
A week before Kennedy was shot, he was with Marilyn Monroe.
एक e-mail के ज़रिये मिला अनोखा सच! शायद सच हो!
Tuesday, June 9, 2009
मैं नहीं हूं!
वीनस केसरी की नज़र है ये नज़्म.उनके एक Blog ’आते हुये लोग’ http://venuskesari.blogspot.com/2009/04/blog-post_24.html पर प्रस्तुत एक रचना
को पढ कर ये विचार विन्यास उत्पन्न हुया.आप सब भी आन्न्द लें!
पढे कोई.
मेरी किस्मत,
गढे कोई.
मै सफ़र हूं,
चले कोई.
मै अकेला,
मिले कोई.
मै अन्धेरा,
जले कोई.
मैं हूं सन्दल,
मले कोई.
मै नहीं हूं,
कहे कोई.
Saturday, May 30, 2009
चुनिन्दा मुक्तक पुराने पन्नों से!
अच्छा हुआ के आप भी जल्दी समझ गये,
दीवानगी है शायरी कोई अच्छा शगल नहीं!
मेरी बर्बादी में वो भी थे बराबर के शरीक
हां वही लोग, जो मेरी मय्यत पे फ़ूट के रोये।
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मैं अपनी ज़िन्दगी से डर गया था,
मगर जो जी मे आया कर गया था।
पुकारते थे तमाम लोग नाम जिसका,
वो आदमी दर असल में मर गया था।
मैं वहां सज़दा अगर करता तो कैसे?
था वो मशहूर पर मेरे लिये वो दर नया था।
Saturday, May 23, 2009
उम्र का सच
उम्र की नाप का पैमाना क्या है?
साल,
माथे या गालों की झुर्रियां,
सफ़ेद बालों की झलक,
मैं मानता नहीं,
उम्रदराज़ होने के लिये,
न तो सालों लम्बे सफ़र की ज़रूरत है,
और न अपने चेहरे पे वख्त की लकीरें उकेरने की,
उम्र तो वो मौसम है ज़िन्दगी का,
जो दबे पांव चला आता है,
अचानक कभी भी,
और सिखा जाता है,
सारे दांव पेंच ,दुनियादारी के,
आप मानते नहीं ,
चलो जाने दो,
अगली बार जब ट्रैफ़िक लाइट पर रुको,
तो कार के शीशे से बाहर देखना,
छै से दस साल की कई कम उम्र लडकियां ,
अपनी गोद में खुद से जरा ही कम बच्चे को लिये,
दिख जायेंगी,
उम्र नापने के सारे पैमाने,
तोड देने का दिल करेगा मेरे दोस्त!
और तब,
एक बार,
सिर्फ़ एक बार,
उन सब ’हेयर कलर’ और ’स्किन क्रीम’ के
नाम याद करने की कोशिश करना,
जो उम्र के निशान मिटा देने का दावा करते है,
उन में से एक भी,
उम्र के,
इन निशानों को नहीं मिटा सकतीं!
Saturday, May 16, 2009
तुम्हारा सच!
हम शेर कहें एसे ज़माने भी आयेगें।
कल रात इस ख्याल से मैं सो नहीं सका,
गर सो गया तो ख्याब सुहाने भी आयेगें।
दुश्मन जो आये कब्र पे,मिट्टी ने ये कहा,
छुप जाओ अब दोस्त पुराने भी आयेंगे।
जो दर्द गैर दे के गये, उनका भी शुक्रिया
अब दोस्त मेरे दिल को दुखाने भी आयेगें।
मैं सज़दा कर रहा था, और पत्थर बना था तू
इस दर पे कभी सर को झुकाने ना आयेगें।
गर तू खुदा था तो मुझे सीने से लगाता,
अब रूठ के तो देख हम मनाने न आयेगें।
इन्सान तो हम भी हैं संगे राह तो नहीं
ठोकर लगे तो लोग क्या उठाने ना आयेगें।
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