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Friday, October 23, 2009

सच बे उन्वान!



पलकें  नम थी मेरी,  
घास पे शबनम की तरह,
तब्बसुम लब पे सजा था,
किसी मरियम की तरह.

वो मुझे छोड गया ,
संगे राह समझ. 
मै उसके साथ चला था,
हरदम, हमकदम की तरह.

वफ़ा मेरी कभी 
रास न आई उसको,
वो ज़ुल्म करता रहा, 
मुझ पे बेरहम की तरह.

फ़रिस्ता मुझको समझ के ,
वो आज़माता रहा,
मैं तो कमज़ोर सा इंसान 
था आदम की तरह.

ख्वाब जो देके गया ,
वो बहुत हंसी है मगर,
तमाम उम्र कटी मेरी 
शबे गम की तरह.



Wednesday, October 14, 2009

बस कह दिया!

चमन को हम साजाये बैठे हैं,
जान की बाज़ी लगाये बैठे हैं.

तुम को मालूम ही नहीं शायद,
दुश्मन नज़रे गडाये बैठे हैं.

सलवटें बिस्तरों पे रहे कायम,
नींदे तो हम गवांये बैठें हैं

फ़ूल लाये हो तो गैर को दे दो,
हम तो दामन जलाये बैठे हैं.

मयकदे जाते तो गुनाह भी था,
बिन पिये सुधबुध गवांये बैठे हैं.

सच न कह्ता तो शायद बेह्तर था,
सुन के सच मूंह फ़ुलाये बैठे हैं.


Saturday, October 10, 2009

मानव योनि!

चौरासी लाख योनिओं में,
शायद ’प्रेत’योनि भी एक है!
या शायद नहीं है?

पता नही!

पर मैं ये जानता हूं कि,
हर देह धारी मनुष्य
प्रेत योनी का सुख उठा सकता है,

अरे आप तो हैरान हो गये,
प्रेत योनि और सुख?
जी हां!

दर असल ये समझना ज़रूरी है कि,
मानव योनि के कौन कौन से कष्ट है,
जो प्रेत योनि में नहीं होते.

सम्वेदना,लगाव,
स्नेह,विरह,कामना,
ईर्ष्या,स्पर्धा,लालसा,
भय,आवेग,करुणा,
आकांछा,और हां

"सब कुछ सच सच जान लेने की ख्वाहिश"!

ये कुछ ऐसी अजीबो गरीब भावनायें हैं,
जो इन्सान के कष्ट का कारण होती है,

प्रेत योनि में ये दुख कहां,
तभी तो मानव देह धारी हो कर भी,
प्रेत योनि की प्रसंशा करते हुये,
उसी की प्राप्ति की ओर अग्रसर हूं!



Tuesday, August 25, 2009

फ़िर से पढे 'ताल्लुकात का सच'!

मुझसे कह्ते तो सही ,जो रूठना था,
मुझे भी , झंझटों से छूटना था.

तमाम अक्स धुन्धले से नज़र आने लगे थे,
आईना था पुराना, टूटना था.

बात सीधी थी, मगर कह्ता मै कैसे,
कहता या न कहता, दिल तो टूटना था.

मैं लाया फूल ,तुम नाराज़ ही थे,
मैं लाता चांद, तुम्हें तो रूठना था.

याद तुमको अगर आती भी मेरी,
था दरिया का किनारा , छूटना था.

Saturday, July 11, 2009

फ़ौर your eyes Only!













एक e-mail से मिला चित्र!
आप सोच लो बच्चे और जानवर तक जान गये है ,ईश्वर सब से बडी सत्ता है.
पर चंद इन्सान जो ये नही मानते कब समझेंगे?


Monday, June 29, 2009

क्या ये सच है!

नया कुछ भी नहीं,ज़िन्दगी हस्बेमामूल चलती है.
लौ ख्यालों की है रौशन ,मोम उम्र की पिघलती है.

मै नहीं चाहता दुनियां से कुछ भी कहना,
जेहन में ,क्यों नदी अरमानों की मचलती है.

मैने चाहा ही नही ,तुझको कभी याद करूं,
बर्फ़ यादों की ये, क्यों नही पिघलती है.

सर्द यादों को तो तेरी,मै कब का दफ़न कर आया,
तपिश गमों की लहू बन के, मेरी रगो में फ़िसलती है.

मै तो गुज़र जाऊगां बरसात के मौसम की तरह,
काई मोहब्त की तो, दिल पे बाद में उभरती हैं.

Thursday, June 25, 2009

जादू का सच!

क्या कहा?, जादू दिखाओगे!
जाने दो फ़िर बेवकूफ़ बनाओगे.

वख्त आने पे बरसात होती है,
ये बात तुम प्यासों को बताओगे.

मेरे ज़ख्मों को बे मरहम ही रहने दो,
ये खुले , तो तुम बिखर जाओगे.

बम धमाके में,वो ही क्यों मरा,
उसकी मां को ,ये कैसे समझाओगे.

मैने माना पढा दोगे, सारे अनपढों को
काबिल जो भूल गये है,सब,उन्हें क्या बताओगे.


Monday, June 15, 2009

ताल्लुकात का सच!


मुझसे कह्ते तो सही ,जो रूठना था,
मुझे भी , झंझटों से छूटना था.

तमाम अक्स धुन्धले से नज़र आने लगे थे,
आईना था पुराना, टूटना था.

बात सीधी थी, मगर कह्ता मै कैसे,
कहता या न कहता, दिल तो टूटना था.

मैं लाया फूल ,तुम नाराज़ ही थे,
मैं लाता चांद, तुम्हें तो रूठना था.

याद तुमको अगर आती भी मेरी,
था दरिया का किनारा , छूटना था.

Thursday, June 11, 2009

बस एसे ही!(Part II)


बहुत पहले एक गज़ल कही थी,

"मैं तुम्हारा नहीं हूँ ,ये बात तो मैं भी जानता हूँ.
मेरी तकलीफ ये है कि, ये बात तुम कहते क्यों हो." Link of the same is given below:


उसी ख्याल पे चंद अंदाज़ और देखें:

कह चुके तुम बात अपनी,
आंखें हमारी नम.

होठ पे मुस्कान तेरे,
दिल में हमारे गम.

दुश्मन नहीं हैं हम तुम्हारे,
मान लो सनम.

महवे आराइश रहो तुम,
हम करे मातम.

फूल लाना तुर्बत पे मेरी,
ज़िन्दगी है कम.

ज़र्रा हूं मै,तुम सितारा,
कैसे हो संगम.


Saturday, May 23, 2009

उम्र का सच

उम्र की नाप का पैमाना क्या है?

साल,

माथे  या गालों की झुर्रियां,

सफ़ेद बालों की झलक,

मैं मानता नहीं,

उम्रदराज़ होने के लिये,
न तो सालों लम्बे सफ़र की ज़रूरत है,
और न अपने चेहरे पे वख्त की लकीरें उकेरने की,

उम्र तो वो मौसम है ज़िन्दगी का,
जो दबे पांव चला आता है,
अचानक कभी भी,
और सिखा जाता है,
सारे दांव पेंच ,दुनियादारी के,

आप मानते नहीं ,

चलो जाने दो,
अगली बार जब ट्रैफ़िक लाइट पर रुको,
तो कार के शीशे से बाहर देखना,  

छै से दस साल की  कई कम उम्र लडकियां ,
अपनी गोद में खुद से जरा ही कम बच्चे को लिये,
दिख जायेंगी,

उम्र नापने के सारे पैमाने,
तोड देने का दिल करेगा मेरे दोस्त!

और  तब,

एक बार, 

सिर्फ़ एक बार,

उन सब ’हेयर कलर’ और ’स्किन क्रीम’ के
नाम याद करने  की कोशिश करना,
जो उम्र के निशान मिटा देने का दावा करते है,


उन में से एक भी,
उम्र के,
इन निशानों को नहीं मिटा सकतीं!


Saturday, May 16, 2009

तुम्हारा सच!


ये कब पता था दर्द के मायने भी आयेगे,
हम शेर कहें एसे ज़माने भी आयेगें।

कल रात इस ख्याल से मैं सो नहीं सका,
गर सो गया तो ख्याब सुहाने भी आयेगें।

दुश्मन जो आये कब्र पे,मिट्टी ने ये कहा,
छुप जाओ अब दोस्त पुराने भी आयेंगे।

जो दर्द गैर दे के गये, उनका भी शुक्रिया
अब दोस्त मेरे दिल को दुखाने भी आयेगें।

मैं सज़दा कर रहा था, और पत्थर बना था तू
इस दर पे कभी सर को झुकाने ना आयेगें।

गर तू खुदा था तो मुझे सीने से लगाता,
अब रूठ के तो देख हम मनाने न आयेगें।

इन्सान तो हम भी हैं संगे राह तो नहीं
ठोकर लगे तो लोग क्या उठाने ना आयेगें।


Sunday, April 26, 2009

एक बार फिर से पढें!

हाथ में इबारतें,लकीरें थीं, 
सावांरीं मेहनत से तो वो तकदीरें थी।
  
जानिबे मंज़िल-ए-झूंठ ,मुझे भी जाना था, 
पाँव में सच की मगर जंज़ीरें थीं।
 
मैं तो समझा था फूल ,बरसेंगे, 
उनके हाथों में मगर शमशीरें थीं। 
 
खुदा समझ के रहेज़दे में ताउम्र जिनके, 
गौर से देखा तो , वो झूंठ की ताबीरे॑ थीं। 
 
पिरोया दर्द के धागे से तमाम लफ़्ज़ों को, 
मेरी ग़ज़लें मेरे ज़ख़्मों की तहरीरें थीं। 


Saturday, April 18, 2009

वख्त का सच!

आईना घिस जायेगा, 
अब और ना  बुहारो यारों,
गर्द  तो चेहरे पे पडी है, 
ज़रा एक हाथ फ़िरा लो यारो।

न करो ज़िक्र गुजरे 
हुये ज़माने का ,
मुश्किल हालात हैं,
अब खुद को सम्भालों यारो।

मैं तो गुज़र जाउंगा,
नाकामियाँ अपनी लेकर,
तुमको तो रहना है अभी,
ज़रा खुद को संवारों यारो।