"सच में!"

दिल की हर बात अब यहाँ होगी, सच और सच बात बस यहाँ होगी

Sunday, February 8, 2009

"झूंठ के पावं"

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वो देखो दौड़ के मंज़िल पे जा पहुँचा, कौन कहता है के,'झूंठ के पावं' नही होते. मैं चीख चीख के सब को बताता रह गया, फिर ना कहना,'दीव...
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Sunday, February 1, 2009

हक़ीक़तन!

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मैं तुम्हारा ही हूँ,कभी आज़मा के देखो. अश्क़ का क़तरा हूँ,आँखों में बसाकर देखो. गर तलाशोगे ,तुम्हें पहलू में ही मिल जाऊँगा, मैं अभी खोया नह...
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Wednesday, January 28, 2009

"और क्या कहूँ इसे"

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रूठना वो तेरा  ऐसे , कहीं कुछ छूट गया हो जै से. बहुत बेरंग हैं आज शाम के रंग, इंद्रधनुष टूट गया हो जैसे. वो मेरे  अरमान  तमाम बिखरे...
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Sunday, January 25, 2009

दर्द की मिक़दार

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मौला, ना कर मेरी हर मुराद तू पूरी, जहाँ से दर्द की मिक़दार क़म हो, ये करना होगा. मसीहा कौन है ,और कौन यहाँ रह्बर है, हर इंसान को इस राह पे, ...
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Thursday, January 22, 2009

"दादी की सुनाई हुई एक और कथा".

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जो दादी ने सुनाई थी उसमें कुछ नये टर्म (contemprory) एड कर के सुनाता हूँ! एक थे सिरक़टु (Jackal) और एक थी उनकी सिर्कॅटी (She Jackal). दोनो...
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Wednesday, January 21, 2009

कुछ मुक्तक

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अब इतनी ग़ज़लों और एक गीत के बाद मेरा दिल करता है, कि मैं कुछ पुराने लिखे हुए मुक्तक आप सब के साथ बाँट लूँ,क्यों की,आप का ही शेर है कि: ...
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Sunday, January 18, 2009

दर्द का मंज़र!

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The recent events at Mumbai had generated a wave of helpnlessness among the Indians, I also felt the same, and couldnot control following ...
Friday, January 16, 2009

दर्द की बूँद क़तरा- क़तरा'

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मैने 08 जनवरी 2009 को एक पोस्ट लिखी थी जिसका उंवान (I mean title) था "दर्द की बूँद" (The same is available at 'Older Posts...
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एक कविता जो मैने लिखी ही नही.

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बात की बात खुराफात की लात, काँटे की चोंच में से निकले तीन तालाब, दो सूखे एक में पानी ऩही, जिस में पानी नही, उससे निकले तीन कुम्हार , द...
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Wednesday, January 14, 2009

"सूखे सर्राटे"!

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एक कहानी बहुत पुरानी! मेरी दादी ने तमाम कहानियाँ मुझे सुनाई थी उनमें से कुछ तो पन्चतन्त्र के  मानदंडो पर खरी उतरती हैं कुछ ऐसी हैं जो...
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रास्तों का सच!

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एक शमा की सब वफाएं,जब हवा से हो गयी. बे चरांगा रास्तों का लुत्फ़ ही जाता रहा. तुम अंधेरे की तरफ कुछ इस क़दर बढ़ते गये, रौशनी मैं देखने का हु...
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Sunday, January 11, 2009

तिज़ारत!

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दिल है कि मेरा जैसे एक खाली मक़ान है,   जर्रजर तो हो गया है, मगर आलीशान है. दुनियाँ के मरहले है,क्या सुलझे है आज तक, इंस...
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ktheLeo (कुश शर्मा)
दर्द बह सकता नही, दरिया की तरह, थम जाता है, मानिन्द लहू की, बस बह के, थोडी देर में| ************************तो बस, मैं,न दरिया, न दर्द,न लहू और शायद थोडा थोडा ये सब कुछ!
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