"सच में!"

दिल की हर बात अब यहाँ होगी, सच और सच बात बस यहाँ होगी

Sunday, April 26, 2009

एक बार फिर से पढें!

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हाथ में इबारतें , लकीरें थीं,  सावांरीं मेहनत से तो वो तकदीरें थी।    जानिबे मंज़िल -ए - झूंठ , मुझे भी जाना था ,   पाँव में सच ...
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Saturday, April 18, 2009

वख्त का सच!

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आईना घिस जायेगा,  अब और ना   बुहारो  यारों, गर्द  तो चेहरे पे पडी है,  ज़रा एक हाथ फ़िरा लो यारो। न करो ज़िक्र गुजरे  हुये ज़माने का , मुश्क...
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Sunday, April 12, 2009

मन का सच!

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खता मेरी नहीं के सच मै ने जाना, कुफ़्र मेरा तो ये बेबाक ज़ुबानी है। मैं, तू, हों या सिकन्दरे आलम, जहाँ  में हर शह आनी जानी है। ना रख मरहम,मे...
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Wednesday, April 1, 2009

उसका सच!

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मुझे लग रहा है,पिछले कई दिनों से , या शायद, कई सालों से, कोई है, जो मेरे बारे में सोचता रहता है, हर दम, अगर ऐसा न होता , तो कौन है जो, मेरे ...
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Tuesday, March 31, 2009

माहौल का सच!

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लिखता नही हूँ शेर मैं, अब इस ख़याल से, किसको है वास्ता यहाँ, अब मेरे हाल से.     चारागर   हालात मेरे, अच्छे बता गया, कुछ नये ज़ख़्म मि...
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Saturday, March 28, 2009

किरदार का सच!

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मेरी तकरीबन हर रचना का,   एक "किरदार" है, वो बहुत ही असरदार है, पर इतना बेपरवाह , कि जानता तक नहीं, कि 'साहित्य' लिखा जा र...
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Thursday, March 26, 2009

अपनी कहानी ,पानी की ज़ुबानी!( Part II)

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बहता रहता हूं, ज़ज़्बातों की रवानी लेकर, दर्द की धूप से ,बादल में बदल जाउंगा। बन के आंसू कभी आंखों से, छलक जाता हूं, शब्द बन कर ,कभी गीतों म...
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Tuesday, March 24, 2009

अपनी कहानी ,पानी की ज़ुबानी !(Part I)

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आबे दरिया हूं मैं,ठहर नहीं पाउंगा, मेरी फ़ि्तरत भी है के, लौट नहीं पाउंगा। जो हैं गहराई में, मिलुगां  उन से जाकर , तेरी ऊंचाई पे ,मैं पह...
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Monday, March 23, 2009

इकलॊते के दो जुडवां ! (दो और मुक्तक!)

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अन्धेरा इस कदर काला नहीं था, उफ़क पे झूठं का सूरज कोई उग आया होगा। मैं ना जाता दर-ए-दुश्मन पे कसीदा पढने, दोस्त बन के  उसने ,मुझे धोखे से ब...
Saturday, March 21, 2009

इकलौता मुक्तक

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आज के इंसान ने बना लिये हैं मकान कई, नतीज़ा ये के, इक ही चेहरे में रहते हैं इंसान कई।  
Thursday, March 19, 2009

बचपन की बातें!

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मेरे बचपन में , मेरे सबसे अच्छे दोस्त ने, मुझसे पूछा, क्या  मै  सुन्दर हूं ? मैने कहा हां! मगर क्यों ? उसने कहा । यूं ही! मैनें कहा, ओके. मे...
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Monday, March 16, 2009

सफ़र का सच!

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इन सब आफ़सानों में,शामिल कुछ ख्याब हमारे होते, हम अगर टूट ना जाते तो शायद  सितारे होते। तमाम कोशिशें मनाने की बेकार गयीं, वो अगर रुठ ना जाते...
Sunday, March 15, 2009

ये भी सच है!

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'कु्छ मुक्तक' लिखते समय एक शेर, मैने आप सब को सुनाया था, और ये भी वादा किया था,कि पूरी गज़ल बाद में कभी  सुनाउंगा। वो शेर कुछ ऎसे था...
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ktheLeo (कुश शर्मा)
दर्द बह सकता नही, दरिया की तरह, थम जाता है, मानिन्द लहू की, बस बह के, थोडी देर में| ************************तो बस, मैं,न दरिया, न दर्द,न लहू और शायद थोडा थोडा ये सब कुछ!
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