"सच में!"

दिल की हर बात अब यहाँ होगी, सच और सच बात बस यहाँ होगी

Monday, September 21, 2009

दरख्त का सच!

›
मैने एक कोमल अंकुर से, मजबूत दरख्त होने तक का सफ़र तय किया है. जब मैं पौधा था, तो मेरी शाखों पे, परिन्दे घोंसला बना ,कर ज़िन्दगी को पर देते ...
9 comments:
Friday, August 28, 2009

सच है ना?

›
आईना मुझको झुठलाने लगा है , अक्स अब धुंधला नज़र आने लगा है. वख्त अब थोडा सा ही बचा है, सूरज पश्चिम की तरफ़ जाने लगा है. दुश्मनो को आओ अब हम...
9 comments:
Tuesday, August 25, 2009

फ़िर से पढे 'ताल्लुकात का सच'!

›
मुझसे कह्ते तो सही ,जो रूठना था, मुझे भी , झंझटों से छूटना था. तमाम अक्स धुन्धले से नज़र आने लगे थे, आईना था पुराना, टूटना था. बात सीधी थी, ...
5 comments:
Wednesday, August 19, 2009

वफ़ा की दुआ!

›
ख्याब शीशे के हैं, किर्चों के सिवा क्या देगें, टूट जायेंगें तो, ज़ख्मों के सिवा क्या देगें ये तो अपने ही मसलो मे उलझें है अभी खुद दर्द के म...
6 comments:
Tuesday, August 11, 2009

इश्क का सच!

›
इन्तेज़ार तेरा किया,मैने ता उम्र मगर, मौत पे कब किसी का इख्तियार होता है! तुम मिले न मुझे,न मैं ही तेरा हो पाया, सच मोहब्बत का है,ऐसे भी प्य...
8 comments:
Monday, August 3, 2009

मौसम

›
लीजिये मौसम सुहाने आ गये, हुस्न वालो के ज़माने आ गये बादलों का पानी कहीं न कम पडे, हम अपने आंसू मिलाने आ गये. मौत भी मेरी,फ़साना बन गयी, दु...
10 comments:
Monday, July 27, 2009

गर्द-ए-सफ़र-ए- इश्क!

›
गर्द-ए-सफ़र-ए-इश्क वो लाया है, खाक कहता है,तू,उसे जो सरमाया है. क्यों कर सजे तब्बसुम अब लब पर तेरे, संगदिल से तू ने क्यूं कर दिल लगाया है. क...
5 comments:

›
उफ़्फ़क पे जाके शायद, मिल जाते, मैं अगर आसमां, और तू ज़मीं होता इस दुनियां में सब मुसाफ़िर हैं, कोई मुस्तकिल मकीं नही होता . सौ बार आईना देख...
4 comments:
Friday, July 24, 2009

अनामिका

›
अनुचरी,अर्धागिंनी,भार्या कोई भी नाम मैने तो नहीं सुझाया, न ही,स्वयं के लिये चुने मैने सम्बोधन जैसे कि प्राणनाथ,स्वामी आदि, फ़िर कब हम दोनो ब...
7 comments:
Wednesday, July 22, 2009

रास्तों का सच!

›
एक शमा की सब वफाएं,जब हवा से हो गयी. बे चरांगा रास्तों का लुत्फ़ ही जाता रहा. तुम अंधेरे की तरफ कुछ इस क़दर बढ़ते गये, रौशनी मैं देखने का हु...
5 comments:
Saturday, July 18, 2009

किरदार का सच!( फ़िर से)

›
मेरी तकरीबन हर रचना का, एक "किरदार" है, वो बहुत ही असरदार है, पर इतना बेपरवाह , कि जानता तक नहीं, कि 'साहित्य' लिखा जा रह...
4 comments:
Saturday, July 11, 2009

जाने क्या?

›
तमाम शहर रौशन हो, ये नही होगा, शमा जले अन्धेरे में ये मज़बूरी है. दर्द मज़लूम का न गर परेशान करे, ज़िन्दगी इंसान की अधूरी है. ज़रूरी काम छो...
12 comments:

फ़ौर your eyes Only!

›
एक e-mail से मिला चित्र! आप सोच लो बच्चे और जानवर तक जान गये है ,ईश्वर सब से बडी सत्ता है. पर चंद इन्सान जो ये नही मानते कब समझेंगे?
3 comments:
Friday, July 10, 2009

मेरा सच

›
मै अपने आप से कभी घबराता नहीं, पर खाम्खां सरे आईना यूंहीं जाता नहीं. चापलूसी,बेईमानी,और दगा, ऐसा कोई फ़न मुझे आता नहीं. बात हो सकता है के ये...
5 comments:
Thursday, July 9, 2009

बचपन की बातें!

›
मेरे बचपन में , मेरे सबसे अच्छे दोस्त ने, मुझसे पूछा, क्या मै सुन्दर हूं ? मैने कहा हां! मगर क्यों ? उसने कहा । यूं ही! मैनें कहा, ओके. मेर...
2 comments:
Tuesday, July 7, 2009

अरमान

›
रूठना वो तेरा ऐसे , कहीं कुछ टूट गया हो जै से. बहुत बेरंग हैं आज शाम के रंग, इंद्रधनुष टूट गया हो जैसे. वो मेरे अरमान तमाम बिखरे ह...
6 comments:
Monday, July 6, 2009

नज़दीकियों का सच!

›
इस रचना को जो तव्वजो मिलनी चाहिये थी, शायद नहीं मिली,इस लिये एक बार फ़िर से post कर रहा हूं. दूरियां खुद कह रही थीं, नज़दीकियां इतनी न थी। अ...
9 comments:
Saturday, July 4, 2009

चमन का सच

›
राज़ अपने सारे मेरी पेशानी पे वो लिख गया बहुत मासूम है उसे ख्याब छुपाने नही आते. मै बादल हूं,यहां से मेरा गुम जाना ही बेह्तर है, नम पलकों...
12 comments:
Monday, June 29, 2009

क्या ये सच है!

›
नया कुछ भी नहीं,ज़िन्दगी हस्बेमामूल चलती है. लौ ख्यालों की है रौशन ,मोम उम्र की पिघलती है. मै नहीं चाहता दुनियां से कुछ भी कहना, जेहन में ,क...
8 comments:
Saturday, June 27, 2009

शायद सच हो!

›
Abraham Lincoln was elected to Congress in 1846. John F. Kennedy was elected to Congress in 1946. Abraham Lincoln was elected President in 1...
7 comments:
Thursday, June 25, 2009

जादू का सच!

›
क्या कहा?, जादू दिखाओगे! जाने दो फ़िर बेवकूफ़ बनाओगे. वख्त आने पे बरसात होती है, ये बात तुम प्यासों को बताओगे. मेरे ज़ख्मों को बे मरहम ही रह...
3 comments:
Tuesday, June 23, 2009

अरमान

›
रूठना वो तेरा ऐसे , कहीं कुछ टूटा गया हो जै से. बहुत बेरंग हैं आज शाम के रंग, इंद्रधनुष टूटा गया हो जैसे. वो मेरे अरमान तमाम बिखरे हुए, शीश...
1 comment:
Friday, June 19, 2009

›
वो देखो दौड़ के मंज़िल पे जा पहुँचा, कौन कहता है के,'झूंठ के पावं' नही होते. मैं चीख चीख के सब को बताता रह गया, फिर ना कहना,'दीव...
4 comments:
Tuesday, June 16, 2009

समंबन्धो का गणित

›
समंबन्धों के अंक गणित , कितने विचित्र हैं, मस्तिष्क के छोटे से कैनवास पर, न जाने कितने मानचित्र है. चाहता है जब किसी से, आदमी जाने कितना जो...
8 comments:
Monday, June 15, 2009

ताल्लुकात का सच!

›
मुझसे कह्ते तो सही ,जो रूठना था, मुझे भी , झंझटों से छूटना था. तमाम अक्स धुन्धले से नज़र आने लगे थे, आईना था पुराना, टूटना था. बात सीधी थ...
2 comments:
Friday, June 12, 2009

नज़दिकीयों का सच!(Part II)

›
रास्ते में संग भी थे, खार थे, थी मुश्किलें. मैं मगर आगे न बढता, लाचारियां इतनी न थीं. शहर के पागल सजर में ढूंडता उसको कहां, उस अज़ी्जो आंशना...
6 comments:
Thursday, June 11, 2009

बस एसे ही!(Part II)

›
बहुत पहले एक गज़ल कही थी, "मैं तुम्हारा नहीं हूँ ,ये बात तो मैं भी जानता हूँ. मेरी तकलीफ ये है कि, ये बात तुम कहते क्यों हो." Link...
6 comments:
Tuesday, June 9, 2009

मैं नहीं हूं!

›
वीनस केसरी की नज़र है ये नज़्म.उनके एक Blog ’आते हुये लोग’ http://venuskesari.blogspot.com/2009/04/blog-post_24.html पर प्रस्तुत एक रचना क...
6 comments:

नज़दीकियों का सच!

›
दूरियां खुद कह रही थीं, नज़दीकियां इतनी न थी। अहसासे ताल्लुकात में, बारीकियां इतनी न थीं। चारागर हैरान क्यों है, हाले दिले खराब पर। बीमार-...
3 comments:
Saturday, May 30, 2009

चुनिन्दा मुक्तक पुराने पन्नों से!

›
अच्छा हुआ के आप भी जल्दी समझ गये, दीवानगी है शायरी कोई अच्छा शगल नहीं! मेरी बर्बादी में वो भी थे बराबर के शरीक हां वही लोग, जो मेरी मय्यत पे...
4 comments:
Wednesday, May 27, 2009

मृत्यु का सच!

›
मर के भी  कब्र में क्यों है बेचैनी, वो खलिश अज़ीब किस्म की थी. चारागर मशरूफ़ थे ईलाज-ए- मरीज-ए- रुह  में, बीमार पर जाता रहा तकलीफ़ उसको को ज...
4 comments:
Saturday, May 23, 2009

उम्र का सच

›
उम्र की नाप का पैमाना क्या है? साल, माथे  या गालों की झुर्रियां, सफ़ेद बालों की झलक, मैं मानता नहीं, उम्रदराज़ होने के लिये, न तो सालों लम्ब...
4 comments:
Wednesday, May 20, 2009

वजह जीने की!

›
बहुत  पहले दो मुक्तक लिखे थे,अब उनके जोडीदार शेर अवतरित हो गये है , अन्धेरा इस कदर काला नहीं था, उफ़्क पे झूठं का  सूरज कहीं उग आया होगा। चश...
6 comments:
Tuesday, May 19, 2009

हम बोलेगा तो बोलोगे,के बोलता है!

›
’IndiBlogger.in’ पर हुये एक discussion के अन्श.पहला विचार मेरा है, और दूसरा उस पर प्रतिक्रिया. बहस का मुद्दा ये था कि लोग Blogging क्यों करत...
1 comment:
‹
›
Home
View web version

About Me?

My photo
ktheLeo (कुश शर्मा)
दर्द बह सकता नही, दरिया की तरह, थम जाता है, मानिन्द लहू की, बस बह के, थोडी देर में| ************************तो बस, मैं,न दरिया, न दर्द,न लहू और शायद थोडा थोडा ये सब कुछ!
View my complete profile
Powered by Blogger.