"सच में!"

दिल की हर बात अब यहाँ होगी, सच और सच बात बस यहाँ होगी

Tuesday, July 27, 2010

पेच-ओ-खम

›
रात काली थी मगर काटी है मैने, लालिमा पूरब में नज़र आने लगी है। डर रहा हूं मौसमों की फ़ितरतों से, फ़िलहाल तो पुरव्वईया सुहानी लगी है। ...
12 comments:
Sunday, July 18, 2010

इंतेहा-ए-दर्द!

›
दर्द को मैं ,अब दवा देने चला हूं, खुद को ही मैं बद्दुआ देने चला हूं! बेवफ़ा को फ़ूल चुभने से लगे थे, ताज कांटो का उसे देने चला हूं! ...
9 comments:
Wednesday, July 14, 2010

वो लम्बी गली का सफ़र!

›
मैं हैरान हूं, ये सोच के कि आखिर तुम्हें पता कैसे चला कि, मैं तुमसे मोहबब्त करता था! तुम्हारी सहेलियां तो मुझे जानती तक नहीं, म...
13 comments:
Tuesday, July 13, 2010

अंखडियां!

›
अंखडियां ! अनकही, कही, सुनी,अनकही, भीगी अंखडियां! सावन! बैरी सावन! भीगा घर आंगन, तरसे मन! खेल ! कराकोरम- कराची रेल खरीदें पा...
2 comments:
Monday, July 12, 2010

तितलियां और चमन!

›
चमन में गुलों का नसीब होता है, जंगली फ़ूल पे कब तितिलियां आतीं है। कातिल अदा आपकी निराली है, हमें कहां ये शोखियां आतीं हैं। एक अरसे से मो...
8 comments:
Friday, July 9, 2010

सच बरसात का!

›
फ़लक पे झूम रही सांवली घटायें हैं, बदलियां हैं या, ज़ुल्फ़ की अदायें हैं। बुला रहा है उस पार कोई नदिया के, एक कशिश है या, यार की सदायें...
13 comments:
Monday, July 5, 2010

गुलों से बात!

›
अज़ीब शक्स है वो गुलो से बात करता है, अपनी ज़ुरूफ़ से भरे दिन को रात करता है. वो जो कहता है भोली प्यार की बातें, खामोश हो के खुदा भी समात ...
5 comments:
Saturday, July 3, 2010

जंगली फ़ूलो का गुलदस्ता!!

›
मैने सोच लिया है इस बार जब भी शहर जाउंगा, एक खाली जगह देख कर सजा दूंगा अपने  सारे ज़ख्म, सुना है शहरों मे  कला के पारखी  रहते ...
10 comments:
Wednesday, June 30, 2010

"अभी, कुछ बाकी है!"

›
आज शाम प्राइम टाइम पर हिन्दी खबरो का एक मशहूर खबरी चैनल जो सबसे तेज़ तो नहीं है,पर TRP में शायद आगे रहता हो, एक सनसनी खेज खबर दिखा रहा था। श...
4 comments:
Saturday, June 26, 2010

नसीब !

›
ज़िन्दगी अच्छी है, पर अज़ीब है न? जो बुरा है, कितना लज़ीज़ है न? गुनाह कर के भी वो सुकून से है, अपना अपना ज़मीर है न? मैं तुझीसे म...
11 comments:
Wednesday, June 23, 2010

›
ज़िन्दगी को उसकी कहानी कहने देते हैं, चलो हम अपने शिकवे रहने देते है। सच और झूंठ का फ़र्क तो फ़िर होगा, दोस्तों को उनकी बात कहने देते है...
5 comments:
Thursday, June 10, 2010

पेड! "बरगद" का!

›
आपने बरगद देखा है,कभी! जी हां, ’बरगद’,  बरर्गर नहीं, ’ब र ग द’ का पेड! माफ़ करें, आजकल शहरों में, पेड ही नहीं होते, बरगद की बात ...
6 comments:
Friday, May 21, 2010

इसे कोई न पढे!

›
थाली के बैगंन, लौटे, खाली हाथ,भानुमती के घर से, बिन पैंदी के लोटे से मिलकर, वहां ईंट के साथ रोडे भी थे, और था एक पत्थर भी, वो भी रास्त...
10 comments:
Tuesday, May 18, 2010

खामोशी!

›
कभी खामोश रह कर  सुनो तो सही, क्या कहती है? मेरी ये  खामोशी! पर अफ़सोस ये है कि, तुम्हारे तर्क वितर्क के शोर से से घबर...
10 comments:
Friday, May 14, 2010

’छ्ज्जा और मुन्डेर’

›
कई बार  शैतान बच्चे की तरह हकीकत को गुलेल बना कर उडा देता हूं,  तेरी यादों के परिंद अपने ज़ेहन की,  मुन्डेरो से, पर हर बार एक नये झ...
10 comments:
Friday, May 7, 2010

प्राइस टैग!

›
अच्छा लगता है, टूट कर, बिखर जाना, बशर्ते, कोई तो हो जो, सहम कर, हर टुकडा उठा कर दामन में रख ले. कीमती समझ कर! पर, अकसर द...
9 comments:
Wednesday, May 5, 2010

प्लीज़!

›
इस बार ऐसा करना, जब बिना बताये आओ, किसी दिन तो  चुपचाप चुरा कर ले जाना, जो कुछ भी, तुम्हें लगे, कीमती, मेरे घर, जेहन, या श...
5 comments:
Tuesday, May 4, 2010

आप ही कहो,क्या सच है?

›
औरतें भी इन्सान जैसी हो गईं है, माँ थीं वो, हैवान जैसी हो गईं हैं! निरुपमा ने ये शायद  सोचा नहीं था, आधुनिकता परिधान जैसी हो गई है। मा...
5 comments:
Saturday, May 1, 2010

गद्दारी, सच में!

›
पैसे को हमने इस तरह भगवान कर दिया, मक्कारी को इंसान ने ईमान कर लिया। हमने तो उनको हाकिम का दर्ज़ा अता किया, इज़्ज़त को सबकी,उसने पावदान ...
10 comments:
Thursday, April 29, 2010

रंग कैसे कैसे!

›
  सबसे नयी और रियल  अभिनेत्री {Reality Show at Islamabad (D) Fame}  माधुरी जी के (अ) सम्मान में ! लहर खुद ही तूफ़ां से जाकर मिल गई! कश्त...
6 comments:
Monday, April 26, 2010

नास्तिक होने का सच!

›
आप किसी नास्तिक से मिले है कभी? मैं भी नहीं मिला,किसी सच्चे और प्योर हार्ड कोर नास्तिक से, जितने भी तथाकथित ’नास्तिक’,मुझे मिले, वे सब वो ...
14 comments:
Wednesday, April 21, 2010

मुर्ग मुस्सलम और पानी!

›
खुली जगह जैसे लान या टेरस आदि में रखें  Select a Pot which is wide enough for the birds . मेरे एक अज़ीज़ दोस्त का  SM...
8 comments:
Monday, April 19, 2010

सच में!

›
धन और सम्पदा, आपको आसानी से मरने नहीं देगी , सच है. परन्तु सच ये भी है, कि, यह आप को, आसानी से, जीने भी नहीं देगी!...
7 comments:
Thursday, April 15, 2010

घर और वफ़ा!

›
मोहब्बतों से घरों को दुआयें मिलतीं हैं, जो सच्चे लोग हैं उनको वफ़ायें मिलतीं है| दर्द मिलने पे भी मुस्कुरा कर देखो! रोने वालो को कडवी दव...
14 comments:
Tuesday, April 13, 2010

"सच में" यहां भी!

›
"सच में" के वो पाठक जो Word Press पर पढना पसंद करते हैं, नीचे दिए पते पर इन्ही रचनाओं का आनन्द  ले सकते हैं!  http://ktheleo.wor...
1 comment:
Saturday, April 10, 2010

शायद इसी लिये!

›
तेरे थरथराते कांपते होठों पर, मैंने कई बार चाहा कि, अपनी नम आंखे, रख दूं! पर, तभी बेसाख्ता  याद आया   भडकती आग पर, घी नही डाला करते...
9 comments:
Wednesday, April 7, 2010

वफ़ा की नुमाइश!

›
कैसे किसी की वफ़ा का दावा करे कोई, शोएब है कोई तो, है आयशा कोई| जिस्मों की नुमाइश है यहां,रिश्तों की हाट में , खुल के क्यों  न जज़बातो...
7 comments:
Friday, April 2, 2010

कडवी कडवी !!!

›
लहू अब अश्क में बहने लगा है, नफ़रतें ख़्वाब  में आने लगीं हैं, मरुस्थल से जिसे  घर में जगह दी नागफ़नी फ़ूलों को खाने लगीं हैं,  हमारी ...
7 comments:
Friday, March 26, 2010

कातिल की बात !

›
मैं कभी करता नहीं दिल की भी बात, पूछते हो मुझसे क्यूं,महफ़िल की बात? दिलनशीं बुतो की परस्तिश तुम करो, हम उठायेगें, यहां संगदिल की बात।  ...
5 comments:
Monday, March 22, 2010

तलाश खुद अपनी!

›
इन्तेहा-ए-उम्मीदे-वफ़ा क्या खूब! जागी आंखों ने सपने सजा लिये। मौत की बेरुखी, सज़र-ए-इन्सानियत में, अधमरे लोग हैं,गिद्दों ने पर फ़ैला ...
3 comments:
Thursday, March 11, 2010

ख्वाहिश!

›
तेरे मेरे  शाम सवेरे, कभी उजाले कभी अंधेरे. मन मेरा, ज्यूं ढलता सूरज गहरे बादल, गेसू तेरे, मैं एकाकी तू भी तन्हा यादों में आ सा...
9 comments:
Thursday, March 4, 2010

कल्कि और कलियुग!

›
बहुत सोचने पर भी ,समझ में तो नहीं आया, पर मानना पडा कि, काल कालान्तर से कुछ भी नहीं बदला, मानव के आचरण में, और न हीं देव और देव न...
4 comments:
Saturday, February 27, 2010

दर्द की मिकदार!एक बार फ़िर से!

›
मौला, ना कर मेरी हर मुराद तू पूरी, जहाँ से दर्द की मिक़दार क़म हो,ये करना होगा. मसीहा कौन है ,और कौन यहाँ रह्बर है, ...
3 comments:
Sunday, February 14, 2010

सच और सियासत!

›
कुछ लफ़्ज़ मेरे इतने असरदार हो गय्रे, चेहरे तमाम लोगो के अखबार हो गये. मक्कारी का ज़माने में  ऐसा चलन हुया, चमचे तमाम शहर की सरकार हो ...
11 comments:
Thursday, February 11, 2010

इंसान होने की सजा!

›
मेरे तमाम गुनाह हैं,अब इन्साफ़ करे कौन. कातिल भी मैं, मरहूम भी मुझे माफ़ करे कौन. दिल में नहीं है खोट मेरे, नीयत भी साफ़ है, कमज़ोरियों ...
4 comments:
Wednesday, February 3, 2010

इकबाले ज़ुर्म!

›
जब मै आता हूं कहने पे,तो सब छोड के कह देता हूं, सच न कहने की कसम है पर तोड के कह देता हूं, दिल है पत्थर का पिघल जाये मेरी बात से तो ठीक, ...
4 comments:
Friday, January 29, 2010

मुगाल्ते

›
मै नहीं मेरा अक्स होगा, जिस्म नही कोई शक्स होगा. ख्वाहिशें बेकार की है, पानी पे उभरा अक्स होगा. ज़िन्दगी अब और क्या हो, आंखों में तेर...
13 comments:
Sunday, January 24, 2010

मजाक सच में

›
हालात से लोग मजबूर हो गये है, निवाले उनके मुंह से दूर हो गये है. इस कदर इस बात पे न ज़ोर डालो , नज़र दुरुस्त है,चश्मे चूर हो गये है रो...
8 comments:
Friday, January 15, 2010

अपनी कहानी ,पानी की ज़ुबानी !

›
आबे दरिया हूं मैं,ठहर नहीं पाउंगा, मेरी फ़ि्तरत भी है के, लौट नहीं आउंगा.  जो हैं गहराई में, मिलुगां  उन से जाकर , तेरी ऊंचाई पे ,मैं ...
5 comments:
Thursday, December 31, 2009

नया साल! सच में!

›
ज़िन्दगी का नया सिलसिला कीजिये, भूल कर रंज़-ओ-गम मुस्कुरा दीजिये. लोग अच्छे बुरे हर तरीके के हैं, खोल कर दिल न सबसे मिला कीजिये. तआर...
3 comments:
Friday, December 11, 2009

दर्द का पता!

›
कल रात मेरी जीवन साथी संजीदा हो गईं, मेरी कविताएं पढते हुये, उसने पूछा, क्या सच में!  आप दर्द को इतनी शिद्द्त से महसूस करते हैं...
12 comments:
‹
›
Home
View web version

About Me?

My photo
ktheLeo (कुश शर्मा)
दर्द बह सकता नही, दरिया की तरह, थम जाता है, मानिन्द लहू की, बस बह के, थोडी देर में| ************************तो बस, मैं,न दरिया, न दर्द,न लहू और शायद थोडा थोडा ये सब कुछ!
View my complete profile
Powered by Blogger.