"सच में!"

दिल की हर बात अब यहाँ होगी, सच और सच बात बस यहाँ होगी

Sunday, October 24, 2010

झूंठ !

›
जब भी आपको झूंठ बोलना हो! (अब आज कल करना ही पडता है!) एक काम करियेगा, झूंठ बोल के, कसम खा लीजियेगा, अब! कसम जितनी मासूम हो, उतना अच्छा!!...
8 comments:
Tuesday, October 12, 2010

ताल्लुकातों की धुंध!

›
पता नहीं क्यों, जब भी मैं किसी से मिलता हूं, अपना या बेगाना, मुझे अपना सा लगता है! और अपने अंदाज़ में मैं खिल जाता हूं, जैसे सर्...
11 comments:
Saturday, October 2, 2010

पंचतत्रं और इकीसवीं सदी!

›
एक बार की बात है! "’एक’ खरगोश ने ’एक’ कछुये से कहा!"...... ’पंचतंत्र’ की कथाओं में ऐसा पढा था, पर शायद, वो बीसवीं सदी की बा...
8 comments:
Tuesday, September 28, 2010

चांदनी रात और ज़िन्दगी!

›
खुशनुमा माहौल में भी गम होता है, हर चांदनी रात सुहानी नहीं होती। भूख, इश्क से भी बडा मसला है, हर एक घटना कहानी नहीं होती। दर्द की कुछ ...
9 comments:
Saturday, September 25, 2010

तुकबन्दी "UNLIMITED"!!

›
दोस्ती में कोई Hierarchy नहीं होती, इश्क में कोई Limit  बाकी नही होती, शराब अपने आप में इकदम मुकम्मल है, हर शराबी के साथ हसीं साकी न...
7 comments:
Friday, September 17, 2010

हर मन की"अनकही"!

›
मैं फ़ंस के रह गया हूं! अपने जिस्म, ज़मीर, ज़ेहन, और आत्मा  की जिद्दोजहद में, जिस्म की ज़रूरतें, बिना ज़ेहन के इस्तेमाल, और ज़मीर...
8 comments:
Tuesday, September 7, 2010

कहकशां यानि आकाशगंगा!

›
ऐ खुदा, हर ज़मीं को एक आस्मां देता क्यूं है? उम्मीद को फ़िर से परवाज़ की ज़ेहमत!   नाउम्मीदी की आखिरी मन्ज़िल है वो। हर आस्मां को कहकश...
13 comments:
Friday, August 20, 2010

खुद की मज़ार!

›
मैं  तेरे  दर से  ऐसे गुज़रा हूं, मेरी खुद की, मज़ार हो जैसे! वो मेरे ख्वाब में यूं आता है, मुझसे ,बेइन्तिहा प्यार हो जैसे! अपनी हिच...
12 comments:
Monday, August 16, 2010

पन्द्रह अगस्त दो हज़ार दस!

›
आज़ादी मिल गई हमको, चलो सडको पे थूकें! आज़ादी मिल गई हमको, चलो ट्रैनों को फ़ूकें! आज़ादी मिल गई हमको, चलो लोगों को कुचलें! आज़ादी मिल गई ...
5 comments:
Tuesday, August 10, 2010

मर्दशुमारी!

›
जनगणना में सुना है अब ज़ात पूछी जायेगी, इन्सान से हैवानियत की बात पूछी जायेगी! कर चुके हम हर तरह से अपने टुकडे, मुर्दों से अब उनकी औकात ...
10 comments:
Thursday, August 5, 2010

द्स्तूर!

›
दस्तूर ये कि लोग सिर्फ़ नाम के दीवाने है, और बुज़ुर्गों ने कहा के नाम में क्या रखा है! लिफ़ाफ़ा देखकर औकात समझो हुज़ुर, बात सब एक है प...
8 comments:
Tuesday, July 27, 2010

पेच-ओ-खम

›
रात काली थी मगर काटी है मैने, लालिमा पूरब में नज़र आने लगी है। डर रहा हूं मौसमों की फ़ितरतों से, फ़िलहाल तो पुरव्वईया सुहानी लगी है। ...
12 comments:
Sunday, July 18, 2010

इंतेहा-ए-दर्द!

›
दर्द को मैं ,अब दवा देने चला हूं, खुद को ही मैं बद्दुआ देने चला हूं! बेवफ़ा को फ़ूल चुभने से लगे थे, ताज कांटो का उसे देने चला हूं! ...
9 comments:
Wednesday, July 14, 2010

वो लम्बी गली का सफ़र!

›
मैं हैरान हूं, ये सोच के कि आखिर तुम्हें पता कैसे चला कि, मैं तुमसे मोहबब्त करता था! तुम्हारी सहेलियां तो मुझे जानती तक नहीं, म...
13 comments:
Tuesday, July 13, 2010

अंखडियां!

›
अंखडियां ! अनकही, कही, सुनी,अनकही, भीगी अंखडियां! सावन! बैरी सावन! भीगा घर आंगन, तरसे मन! खेल ! कराकोरम- कराची रेल खरीदें पा...
2 comments:
Monday, July 12, 2010

तितलियां और चमन!

›
चमन में गुलों का नसीब होता है, जंगली फ़ूल पे कब तितिलियां आतीं है। कातिल अदा आपकी निराली है, हमें कहां ये शोखियां आतीं हैं। एक अरसे से मो...
8 comments:
Friday, July 9, 2010

सच बरसात का!

›
फ़लक पे झूम रही सांवली घटायें हैं, बदलियां हैं या, ज़ुल्फ़ की अदायें हैं। बुला रहा है उस पार कोई नदिया के, एक कशिश है या, यार की सदायें...
13 comments:
Monday, July 5, 2010

गुलों से बात!

›
अज़ीब शक्स है वो गुलो से बात करता है, अपनी ज़ुरूफ़ से भरे दिन को रात करता है. वो जो कहता है भोली प्यार की बातें, खामोश हो के खुदा भी समात ...
5 comments:
Saturday, July 3, 2010

जंगली फ़ूलो का गुलदस्ता!!

›
मैने सोच लिया है इस बार जब भी शहर जाउंगा, एक खाली जगह देख कर सजा दूंगा अपने  सारे ज़ख्म, सुना है शहरों मे  कला के पारखी  रहते ...
10 comments:
Wednesday, June 30, 2010

"अभी, कुछ बाकी है!"

›
आज शाम प्राइम टाइम पर हिन्दी खबरो का एक मशहूर खबरी चैनल जो सबसे तेज़ तो नहीं है,पर TRP में शायद आगे रहता हो, एक सनसनी खेज खबर दिखा रहा था। श...
4 comments:
Saturday, June 26, 2010

नसीब !

›
ज़िन्दगी अच्छी है, पर अज़ीब है न? जो बुरा है, कितना लज़ीज़ है न? गुनाह कर के भी वो सुकून से है, अपना अपना ज़मीर है न? मैं तुझीसे म...
11 comments:
Wednesday, June 23, 2010

›
ज़िन्दगी को उसकी कहानी कहने देते हैं, चलो हम अपने शिकवे रहने देते है। सच और झूंठ का फ़र्क तो फ़िर होगा, दोस्तों को उनकी बात कहने देते है...
5 comments:
Thursday, June 10, 2010

पेड! "बरगद" का!

›
आपने बरगद देखा है,कभी! जी हां, ’बरगद’,  बरर्गर नहीं, ’ब र ग द’ का पेड! माफ़ करें, आजकल शहरों में, पेड ही नहीं होते, बरगद की बात ...
6 comments:
Friday, May 21, 2010

इसे कोई न पढे!

›
थाली के बैगंन, लौटे, खाली हाथ,भानुमती के घर से, बिन पैंदी के लोटे से मिलकर, वहां ईंट के साथ रोडे भी थे, और था एक पत्थर भी, वो भी रास्त...
10 comments:
Tuesday, May 18, 2010

खामोशी!

›
कभी खामोश रह कर  सुनो तो सही, क्या कहती है? मेरी ये  खामोशी! पर अफ़सोस ये है कि, तुम्हारे तर्क वितर्क के शोर से से घबर...
10 comments:
Friday, May 14, 2010

’छ्ज्जा और मुन्डेर’

›
कई बार  शैतान बच्चे की तरह हकीकत को गुलेल बना कर उडा देता हूं,  तेरी यादों के परिंद अपने ज़ेहन की,  मुन्डेरो से, पर हर बार एक नये झ...
10 comments:
Friday, May 7, 2010

प्राइस टैग!

›
अच्छा लगता है, टूट कर, बिखर जाना, बशर्ते, कोई तो हो जो, सहम कर, हर टुकडा उठा कर दामन में रख ले. कीमती समझ कर! पर, अकसर द...
9 comments:
Wednesday, May 5, 2010

प्लीज़!

›
इस बार ऐसा करना, जब बिना बताये आओ, किसी दिन तो  चुपचाप चुरा कर ले जाना, जो कुछ भी, तुम्हें लगे, कीमती, मेरे घर, जेहन, या श...
5 comments:
Tuesday, May 4, 2010

आप ही कहो,क्या सच है?

›
औरतें भी इन्सान जैसी हो गईं है, माँ थीं वो, हैवान जैसी हो गईं हैं! निरुपमा ने ये शायद  सोचा नहीं था, आधुनिकता परिधान जैसी हो गई है। मा...
5 comments:
Saturday, May 1, 2010

गद्दारी, सच में!

›
पैसे को हमने इस तरह भगवान कर दिया, मक्कारी को इंसान ने ईमान कर लिया। हमने तो उनको हाकिम का दर्ज़ा अता किया, इज़्ज़त को सबकी,उसने पावदान ...
10 comments:
Thursday, April 29, 2010

रंग कैसे कैसे!

›
  सबसे नयी और रियल  अभिनेत्री {Reality Show at Islamabad (D) Fame}  माधुरी जी के (अ) सम्मान में ! लहर खुद ही तूफ़ां से जाकर मिल गई! कश्त...
6 comments:
Monday, April 26, 2010

नास्तिक होने का सच!

›
आप किसी नास्तिक से मिले है कभी? मैं भी नहीं मिला,किसी सच्चे और प्योर हार्ड कोर नास्तिक से, जितने भी तथाकथित ’नास्तिक’,मुझे मिले, वे सब वो ...
14 comments:
Wednesday, April 21, 2010

मुर्ग मुस्सलम और पानी!

›
खुली जगह जैसे लान या टेरस आदि में रखें  Select a Pot which is wide enough for the birds . मेरे एक अज़ीज़ दोस्त का  SM...
8 comments:
Monday, April 19, 2010

सच में!

›
धन और सम्पदा, आपको आसानी से मरने नहीं देगी , सच है. परन्तु सच ये भी है, कि, यह आप को, आसानी से, जीने भी नहीं देगी!...
7 comments:
Thursday, April 15, 2010

घर और वफ़ा!

›
मोहब्बतों से घरों को दुआयें मिलतीं हैं, जो सच्चे लोग हैं उनको वफ़ायें मिलतीं है| दर्द मिलने पे भी मुस्कुरा कर देखो! रोने वालो को कडवी दव...
14 comments:
Tuesday, April 13, 2010

"सच में" यहां भी!

›
"सच में" के वो पाठक जो Word Press पर पढना पसंद करते हैं, नीचे दिए पते पर इन्ही रचनाओं का आनन्द  ले सकते हैं!  http://ktheleo.wor...
1 comment:
Saturday, April 10, 2010

शायद इसी लिये!

›
तेरे थरथराते कांपते होठों पर, मैंने कई बार चाहा कि, अपनी नम आंखे, रख दूं! पर, तभी बेसाख्ता  याद आया   भडकती आग पर, घी नही डाला करते...
9 comments:
Wednesday, April 7, 2010

वफ़ा की नुमाइश!

›
कैसे किसी की वफ़ा का दावा करे कोई, शोएब है कोई तो, है आयशा कोई| जिस्मों की नुमाइश है यहां,रिश्तों की हाट में , खुल के क्यों  न जज़बातो...
7 comments:
‹
›
Home
View web version

About Me?

My photo
ktheLeo (कुश शर्मा)
दर्द बह सकता नही, दरिया की तरह, थम जाता है, मानिन्द लहू की, बस बह के, थोडी देर में| ************************तो बस, मैं,न दरिया, न दर्द,न लहू और शायद थोडा थोडा ये सब कुछ!
View my complete profile
Powered by Blogger.