Thursday, March 12, 2009

तकलीफ़-ए-रूह!(एक बात बहुत पुरानी!)

चारागर मशरूफ़ थे ,ईलाज़े मरीज़े रूह में,
बीमार पर जाता रहा ,तकलीफ़ उसको जिस्म की थी।

बाद मरने के भी , कब्र में है बेचॆनी,
वो खलिश अज़ीब किस्म की थी।

किस्सा गो कहता रहा ,रात भर सच्ची बातें,
नींद उनको आ गई ,तलाश जिन्हे तिलिस्म की थी।

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शब्दार्थ:
चारागर : हकीम (Local Doctor)

मशरूफ़ :वयस्त ( Engaged)

खलिश :दर्द की चुभन (Pain)

किस्सा गो :कहानी सुनाने वाला (Story Teller)


तिलिस्म :जादू
(Magic)




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1 comment:

  1. बेहिचक कह दिया है मैंने....आपने लिखा बेहद अच्छा है....और क्या कहूँ मैं....कि "गाफिल तो अभी बच्चा है....!!

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Please feel free to express your true feelings about the 'Post' you just read. "Anonymous" Pl Excuse Me!
बेहिचक अपने विचारों को शब्द दें! आप की आलोचना ही मेरी रचना को निखार देगी!आपका comment न करना एक मायूसी सी देता है,लगता है रचना मै कुछ भी पढने योग्य नहीं है.So please do comment,it just takes few moments but my effort is blessed.