Monday, March 16, 2009

सफ़र का सच!



इन सब आफ़सानों में,शामिल कुछ ख्याब हमारे होते,
हम अगर टूट ना जाते तो शायद  सितारे होते।

तमाम कोशिशें मनाने की बेकार गयीं,
वो अगर रुठ ना जाते तो हमारे होते।

तूंफ़ां खुद मुसाफ़िर था कश्ती  में मेरी,
मुश्किलें पतवार थीं,वरना हम भी किनारे होतें।   

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