Tuesday, March 31, 2009

माहौल का सच!

लिखता नही हूँ शेर मैं, अब इस ख़याल से,
किसको है वास्ता यहाँ, अब मेरे हाल से. 
 
चारागर हालात मेरे, अच्छे बता गया,
कुछ नये ज़ख़्म मिले हैं मुझे गुज़रे साल से

मासूम लफ्ज़ कैसे, मसर्रत अता करें,
जब भेड़िया पुकारे मेमने की खाल से.

इस तीरगी और दर्द से, कैसे लड़ेंगे हम,
 मौला तू , दिखा रास्ता अपने ज़माल से.


4 comments:

  1. माननीय महोदय,
    आज आपके ब्लाग पर आने का अवसर मिला। बहुत ही उपयोगी रचना है आपकी। यदि आप इन्हें प्रकाशित कराना चाहते हैं तो मेरे ब्लगा पर अवश्य ही पधारे। आप निराश नहीं होंगे।
    समीक्षा के लिए http://katha-chakra.blogspot.com
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    अखिलेश शुक्ल

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  2. जी हाँ!
    आपने माहौल के सच को आइना दिखा दिया है।
    आपको अन्तर्राष्ट्रीय महामूर्ख दिवस की
    शभकामनाएँ प्रेषित करता हूँ।

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  3. सादर अभिवादन
    बहुत ही संदर प्रस्तुति भारतीय जन मानस को आलोकित कर देने वाली भाषा तथा विचारों का सरस तथा अविरल प्रवाह।
    अखिलेश शुक्ल
    संपादक कथा चक्र

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Please feel free to express your true feelings about the 'Post' you just read. "Anonymous" Pl Excuse Me!
बेहिचक अपने विचारों को शब्द दें! आप की आलोचना ही मेरी रचना को निखार देगी!आपका comment न करना एक मायूसी सी देता है,लगता है रचना मै कुछ भी पढने योग्य नहीं है.So please do comment,it just takes few moments but my effort is blessed.