Tuesday, August 25, 2009

फ़िर से पढे 'ताल्लुकात का सच'!

मुझसे कह्ते तो सही ,जो रूठना था,
मुझे भी , झंझटों से छूटना था.

तमाम अक्स धुन्धले से नज़र आने लगे थे,
आईना था पुराना, टूटना था.

बात सीधी थी, मगर कह्ता मै कैसे,
कहता या न कहता, दिल तो टूटना था.

मैं लाया फूल ,तुम नाराज़ ही थे,
मैं लाता चांद, तुम्हें तो रूठना था.

याद तुमको अगर आती भी मेरी,
था दरिया का किनारा , छूटना था.

5 comments:

  1. खूबसूरत रचना ..आपकी हरेक रचना , वैसे एक बार नही,बार, बार दाद लेने की काबिलियत रखती है..!

    http://shamasansmaran.blogspot.com

    http://shama-baagwaanee.blogspot.com

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  2. बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति है।
    बधाई!

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  3. तमाम अक्स धुन्धले से नज़र आने लगे थे,
    आईना था पुराना, टूटना था.

    बहुत खूब....!!

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  4. मुझसे कह्ते तो सही ,जो रूठना था,
    मुझे भी , झंझटों से छूटना था.

    Kya baat hai

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