Friday, August 28, 2009

सच है ना?


आईना मुझको झुठलाने लगा है ,
अक्स अब धुंधला नज़र आने लगा है.

वख्त अब थोडा सा ही बचा है,
सूरज पश्चिम की तरफ़ जाने लगा है.

दुश्मनो को आओ अब हम माफ़ कर दें,
दोस्त मेरा, मेरे घर आने लगा है.

क्यों भला शैतान पाये बद्दुयाएं,
फ़रिस्ता भी तो साज़िशें रचाने लगा है.


क्यों भला हम रिन्द को तोहमत लगाये,

साकी भी तो जाम छ्लकाने लगा है.


बाढ सूखे से तुम्हें क्या लेना देना,

SENSEX तो अब ऊपर जाने लगा है.

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"सच में" के सुधी पाठकों और अपने चाहने वालों से कुछ समय के लिये ,इस माध्यम (Blog 'sachmein') पर मुखातिब नहीं हो पाऊंगा.आशा है आप सब की दुआएं जल्द ही मुझे वापस आने के लिये हालात बना देंगी.तब तक के लिये,take care & Happy Bloging!

_Ktheleo


9 comments:

  1. क्यों भला हम रिन्द को तोहमत लगाये,
    साकी भी तो जाम छ्लकाने लगा है.

    sahi baat hai..
    hamesha ki tarah lajwaab..

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  2. बाढ सूखे से तुम्हें क्या लेना देना,

    SENSEX तो अब ऊपर जाने लगा है.

    Duryodhan hai osama hai kans kabhi kehlaata hai..
    Rangmanch ka patr wahi hai roop badal sa jaata hai.
    Bazaron main chadne walo yaad ise bhi rakhna tum,
    adha bahrat aaj bhi shayad aadhi roti khata hai.

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  3. आपको पढना बहुत अच्छा लगा..
    हर शब्द में कशिश और सच्चाई है
    बेहतरीन ..सुन्दर भाव

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  4. साकी भी तो जाम छ्लकाने लगा है.nice

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  5. Oh..khul gaya aapka blog..! Har panktee daad mangatee hai..isse aage kya kahun?

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  6. "डूबते सूरज को वक़्ते शाम देख!" सब उगते sooraj ko ardhy arpan karte hain, ham pashchim ko dekh dua karenge!

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  7. वख्त अब थोडा सा ही बचा है,
    सूरज पश्चिम की तरफ़ जाने लगा है.


    दुश्मनो को आओ अब हम माफ़ कर दें,
    दोस्त मेरा, मेरे घर आने लगा है.


    क्यों भला शैतान पाये बद्दुयाएं,
    फ़रिस्ता भी तो साज़िशें रचाने लगा है.
    bahut dino se aap nahi aaye hain..
    aapke sher ek baar fir padhne aayi thi bahut khoob..

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