Thursday, February 11, 2010

इंसान होने की सजा!

मेरे तमाम गुनाह हैं,अब इन्साफ़ करे कौन.
कातिल भी मैं, मरहूम भी मुझे माफ़ करे कौन.

दिल में नहीं है खोट मेरे, नीयत भी साफ़ है,
कमज़ोरियों का मेरी, अब हिसाब करे कौन.

हर बार लड रहा हूं मै खुद अपने आपसे, 
जीतूंगा या मिट जाऊंगा, कयास करे कौन.      

मुदद्दत से जल रहा हूं मै गफ़लत की आग में,
मौला के सिवा, मेरी नज़र साफ़ करे कौन.

गर्दे सफ़र है रुख पे मेरे, रूह को थकान,
नफ़रत की हूं तस्वीर,प्यार बेहिसाब करे कौन.



4 comments:

  1. मुदद्दत से जल रहा हूं मै गफ़लत की आग में,
    मौला के सिवा, मेरी नज़र साफ़ करे कौन.

    गर्दे सफ़र है रुख पे मेरे, रूह को थकान,
    नफ़रत की हूं तस्वीर,प्यार बेहिसाब करे कौन.

    बहुत ही ग़ज़ब के शेर कहते हैं आप ..... नये अंदाज़ और नया पैगाम लिए हैं आपके शेर ..... बहुत .... अंतिम शेर तो कमाल का है ...... बहुत गहरी सोचऔर अनुभव के बाद निकलते हैं ऐसे अशआर है ........

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  2. नफ़रत की हूं तस्वीर,प्यार बेहिसाब करे कौन.nice

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  3. आज ही आपका ब्लाग देखा है, सच मानिये बहुत पसंद आया। खासतौर पर, ’अपनी कहानी, पानी की जुबानी’ रचना बहुत अच्छी लगी।
    शुभकामनायें

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  4. दिल में नहीं है खोट मेरे, नीयत भी साफ़ है,
    कमज़ोरियों का मेरी, अब हिसाब करे कौन.

    मुदद्दत से जल रहा हूं मै गफ़लत की आग में,
    मौला के सिवा, मेरी नज़र साफ़ करे कौन.

    sabhi sher subhanallah..
    aap sachmuch bahut hi accha likhte hain..
    aabhar..

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