Friday, March 26, 2010

कातिल की बात !

मैं कभी करता नहीं दिल की भी बात,
पूछते हो मुझसे क्यूं,महफ़िल की बात?

दिलनशीं बुतो की परस्तिश तुम करो,
हम उठायेगें, यहां संगदिल की बात। 

ज़ालिम-ओ-हाकिम यहां सब एक हैं,
कौन सुनता है यहां बिस्मिल की बात!

कत्ल मेरा क्यों हुया? तुम ही कहो,
मैं जानूं!क्या थी,भला कातिल की बात?

लहर खुद ही तूफ़ां से जाकर मिल गई!
कश्तियां करती रहीं साहिल की बात।

5 comments:

  1. लहर खुद ही तूफ़ां से जाकर मिल गई!
    कश्तियां करती रहीं साहिल की बात।
    ऐसा भी होता है
    बहुत खूब

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  2. Awesome! Awesome! Awesome!!!!!
    "Kashtiyaan karti rahi sahil ki baat" was jus gr8 gr8 gr8!!
    Keep writing!
    Nice work

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  3. लहर खुद ही तूफ़ां से जाकर मिल गई!
    कश्तियां करती रहीं साहिल की बात।

    -क्या बात है!! बहुत खूब!

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  4. लहर खुद ही तूफ़ां से जाकर मिल गई!
    कश्तियां करती रहीं साहिल की बात ..

    कमाल का शेर है ... सच है लहरों का मिज़ाज़ किसने जाना है ...

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