Tuesday, May 18, 2010

खामोशी!

कभी खामोश रह कर 




सुनो तो सही,




क्या कहती है?




मेरी ये 


खामोशी!


पर अफ़सोस ये है कि,
तुम्हारे तर्क वितर्क के शोर से से घबरा कर,


अक्सर 


खामोश ही रह जाती है 








मेरी 



खामोशी!

10 comments:

  1. आपकी यह रचना अच्छी लगी ... सच है कि आज शोर शराबे में खो कर इंसान दिल कि बात सुनना भूल गया है ...

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  2. खामोशी की अपनी आवाज़ होती है....बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  3. Aapki khaamoshi ki daastan ... behad khaamosh daastaan ...

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  4. तर्क वितर्क से खामोश हुई ख़ामोशी , इस ख़ामोशी को खामोश होकर सुना जा सकता है, बहुत बढ़िया

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  5. bahut hi khubsurat rachna...
    achha laga padhkar...
    -----------------------------------
    mere blog par meri nayi kavita,
    हाँ मुसलमान हूँ मैं.....
    jaroor aayein...
    aapki pratikriya ka intzaar rahega...
    regards..
    http://i555.blogspot.com/

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  6. मनभावन रचना..अच्छी लगी..बधाई.

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  7. छोटी, किंतु सशक्त कविता। कितनी खामोशियों को एक साथ स्वर देती हुई।

    प्रशंसनीय...!

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  8. Oh! Yah rachna chhoot gayi thi mujh se! Nayi rachna talashne pahunchi aur yah mil gayi..kya kahun?

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