Friday, May 14, 2010

’छ्ज्जा और मुन्डेर’

कई बार 
शैतान बच्चे की तरह
हकीकत को गुलेल बना कर
उडा देता हूं, 
तेरी यादों के परिंद
अपने ज़ेहन की, 

मुन्डेरो से,

पर हर बार एक नये झुंड की
शक्ल में 
आ जातीं हैं और
चहचहाती हैं  




तेरी,यादें


और सच पूछो तो 

अब उनकी आवाज़ें
टीस की मानिन्द चुभती सी लगने लगीं है।


मैं और मेरा मन 
दोनो जानते हैं,
कि आती है
तेरी याद,
अब मुझे,ये अहसास दिलाने कि


तू नहीं है,न अपने 


छ्ज्जे पर 



और न मेरे आगोश में।

10 comments:

  1. आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया और यकीन मानिए यहीं अटक कर रह गया...आपकी रचनाएँ अप्रतिम हैं...ठन्डे हवा की झोंके सी हैं...बेहतरीन...बहुत अच्छा लगा पढ़ कर...मेरी बधाई स्वीकार करें....
    नीरज

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  2. क्या बात है ! बहुत सुन्दर कविता ... बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ... सच में यादें बहुत सताती हैं ... और कभी कभी जी करता है कि किसी तरह इन यादों को भगा दिया जाये ... आपने मेरे मन कि बात कह डाली है ...

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  3. यादों के पिंजरे में कैद है प्यार की बुलबुल
    बड़ा सताती है ...

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  4. "कविता" पर आप सब ने कहा:

    'उदय' said...
    ... अदभुत ...!!!

    May 14, 2010 5:58 PM


    शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...
    कई बार शैतान बच्चे की तरह
    हकीकत को गुलेल बना कर..उडा देता हूं,
    तेरी यादों के परिंद...अपने ज़ेहन की..मुन्डेरो से,

    पर हर बार एक नये झुंड की शक्ल में
    आ जातीं हैं और चहचहाती हैं तेरी,यादें.....

    शब्द वही होते हैं,
    बस उन्हें पेश करने का सलीका ही
    रचना को खास बना देता है....
    हकीकत को गुलेल....यादों के परिंद...
    ज़ेहन की..मुन्डेर....चहचहाती हुई यादें....
    अभी सोचने दीजिये कि दाद के लिये
    कुछ खास और खूबसूरत अल्फ़ाज़ मिल जाये
    बिल्कुल इस कविता जैसे.

    May 14, 2010 8:15 PM


    sangeeta swarup said...
    बहुत सुन्दर रूपक लिए हैं....हकीकत की गुलेल, यादों के परिंदे....ज़ेहन की मुंडेर ...

    अच्छी लगी रचना

    May 14, 2010 8:57 PM


    shama said...
    Alfazon ka istemaal itna mauzoom hota hai ki, stabdh kar deta hai..mujhe to saleeqese daad dena bhi nahi aata!

    May 14, 2010 9:24 PM

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  5. यादें जब आती हैं तो हम बन जाते हैं प्यादे
    मुड़ेर और छज्जे से नीचे उतरिये जनाब आप जिसका इंतजार कर रहे है; आप जिसकी यादों में खोये हैं वह तो आपके दिल के अन्दर से आवाज दे रही हैं.
    सुन्दर रचना
    काफी दिनों से आपके ब्लाग पर न पहुँच पाने का खेद है.

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  6. lambe samay baad blog pe aana hua ..afsosh hai

    behad marmik ,abhivyakti

    ....................yaad kuch aayi is qadar bhooli hui kahaniyan
    soye hue dil mein dard jaga ke rah gayii

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  7. Nice.............Short of words to explain. Really very touching.

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  8. ब्लौग छोड़ कर जा रहा था कि इस छज्जे और मुंडेर पर नजर टिक गयी। लाजवाब बिम्ब...अपने मुहल्ले के उन तमाम छज्जों और मुंडेरों की याद दिला गयी।

    आखिरी का पंच-लाइन कविता को मुकम्मल करता हुआ...

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  9. उम्मेद गोठवाल said...
    सुन्दर अभिव्यक्ति......सच है मन रूपी मुण्डेर से यादों रूपी परिन्दे को उङाना बहुत मुश्किल है.....मानवीय जज्बातों की ये सुन्दर प्रस्तुति मन को कहीं भीतर तक संस्पर्श करती है......बधाई........कृपया मेरे ब्लॉग से जुङेगे तो खुशी होगी।

    May 18, 2010 11:03 PM

    वन्दना said...
    वाह्……………गज़ब के भाव ,गज़ब का शब्द चयन,गज़ब की प्रस्तुति।

    May 18, 2010 11:53 PM

    दिगम्बर नासवा said...
    Lajawaab ... shabd nahi hain mere paas kuch kahne ko ...

    May 19, 2010 1:24 AM

    वाणी गीत said...
    यादें कहाँ जाती है किसी गुलेल से डर कर ...
    डेरा डाले रखती हैं छज्जे पर मुंडेर पर ..!!

    May 19, 2010 3:49 AM

    'उदय' said...
    ...बहुत सुन्दर !!!

    May 19, 2010 6:42 AM

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