Wednesday, May 5, 2010

प्लीज़!

इस बार ऐसा करना,


जब बिना बताये आओ,


किसी दिन

तो 
चुपचाप
चुरा कर ले जाना,

जो कुछ भी,
तुम्हें लगे,
कीमती,

मेरे घर,
जेहन,
या शख्शियत में,

प्लीज़!

गर ये भी न हो पाया,


(कि तुम्हे कुछ भी कीमती न लगे)


तो ,
मैं,


टूट जाउंगा,

क्यों कि सुना है,


मुफ़लिसी 


इन्सान को


खोखला कर देती है!



5 comments:

  1. ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है

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  2. "कविता" पर आप लोगों ने कहा ये:

    ज्योति सिंह said...

    क्यों कि सुना है,


    मुफ़लिसी


    इन्सान को


    खोखला कर देती है!
    bahut hi sundar panktiyaan aur sundar rachna bhi ,bha gayi man ko .

    May 5, 2010 10:43 AM



    nilesh mathur said...
    वाह! बहुत सुन्दर !

    May 5, 2010 12:41 PM



    संजय भास्कर said...
    बहुत खूब, लाजबाब !

    May 5, 2010 6:27 PM



    वाणी गीत said...

    चोर को मुफलिसी से बचने के लिए अपना घर लुटाना ...
    क्या कहूँ ... मानवता ...खुद मिट कर दूसरों को आबाद करने की चाह ...??

    May 5, 2010 7:27 PM



    मनोज कुमार said...

    बहुत सुन्दर रचना|

    May 5, 2010 7:46 PM



    shama said...

    Leoji,Kya kamal karte hain aap har baar!

    May 5, 2010 10:45 PM

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