Friday, May 7, 2010

प्राइस टैग!

अच्छा लगता है,
टूट कर,
बिखर जाना,
बशर्ते,
कोई तो हो
जो,


सहम कर,
हर टुकडा
उठा कर
दामन में रख ले.
कीमती समझ कर!


पर,




अकसर देखा है,
घरों में,
कीमती और नाज़ुक
चीज़ों पे
प्राइस टैग नहीं होते.!


और लोग खामोश गुजर जाते हैं,
चीजों के किरच -किरच हो कर बिखर जाने पर भी!







9 comments:

  1. अंग्रेजी में एक कहावत है "Familiarity breeds contempt " ! हिंदी में कहते हैं कि "घर का जोगी भात न पाए" ! अब दिल की हालत भी ऐसी ही कुछ हो गयी है !
    बहुत सुन्दर रचना है ... आपने बेबसी की हालत को बखूबी उभारा है

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  2. और यही खामोशी सजा बन जाती है अक्सर ...जब जब जोड़ा है आईना एक और पत्थर खाया है....

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  3. ये खामोशी मजबूरी होती है ... बोझ होता है .... शायद इसके सिवा कोई चारा नही होता ...

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  4. bahut hi satya kathan...
    achhe bhaw hain...
    yun hi likhte rahein...
    -----------------------------------
    mere blog mein is baar...
    जाने क्यूँ उदास है मन....
    jaroora aayein
    regards
    http://i555.blogspot.com/

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  5. us khamoshi se gujarne ki aawaz kabhi suno to kaan ke parde fat jaayenge..
    bahu khoobsurat hai aapka aandaaz-e-bayaan..

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  6. Aap aisa likh jate hain,ki,mai khamosh hi rah jati hun !
    'Kavita" blog to maine aphi ke zimme chhod rakha hai..aisi damdaar rachnaon ke aage meri rachana(!)behad bauni lagti hai..yahi 'sach' hai.

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  7. KUSH SHARMA MEREY PURNEY ANTARANG MITR HAIN, BAHUT GEHRA SOCH TEY HAIN. UNKI VAAKPATUTA TATHA KAVYA BHAAV SEHAJ HAIN.

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बेहिचक अपने विचारों को शब्द दें! आप की आलोचना ही मेरी रचना को निखार देगी!आपका comment न करना एक मायूसी सी देता है,लगता है रचना मै कुछ भी पढने योग्य नहीं है.So please do comment,it just takes few moments but my effort is blessed.