Wednesday, July 14, 2010

वो लम्बी गली का सफ़र!



मैं हैरान हूं,
ये सोच के कि आखिर तुम्हें पता कैसे चला कि,
मैं तुमसे मोहबब्त करता था!


तुम्हारी सहेलियां तो मुझे जानती तक नहीं,


मैं हैरान हूं,
कि आखिर क्यों, तुम आ जाती थीं, छ्ज्जे पर,
जब मेरे गुज़रने का वख्त होता था,तुम्हारी गली से,


मैने तो कभी नज़र मिलाई नहीं तुमसे जान कर!


मैं हैरान हूं,
कि अब कहां मिलोगी तुम,एक उम्र बीत जाने के बाद,
क्यों कि मैं खुद तुम से नज़रें मिला कर कहना चाहता हूं,


हां! मैं मोहबब्त करता हूं तुमसे, बेपनाह! 


शायद मैं अब जान पाया इतने साल बाद के,
मैं क्यों साफ़ सडक छोड कर घर जाता था,
उस तंग और लम्बी गली से होकर!



13 comments:

  1. शायद मैं अब जान पाया इतने साल बाद के,
    मैं क्यों साफ़ सडक छोड कर घर जाता था,
    उस तंग और लम्बी गली से होकर!
    बहोत सुंदर ।

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  2. शानदार पोस्ट

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  3. मैं क्यों साफ़ सडक छोड कर घर जाता था,
    उस तंग और लम्बी गली से होकर!
    हृदय जब किसी के लिये धड़कता है तो ऐसा ही होता है....

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  4. सर जी, लग रहा है मौसम ही जिम्मेदार है, जिधर देखो नोस्ताल्जिया ही नोस्ताल्जिया।
    और जब मोहब्बत होती है तो पता चल ही जाता है,
    ’अंदाज महकने लगते हैं, बातों में शरारत होती है’
    सब पता चल जाता है जब दिल में मोहब्बत होती है’

    गुजरे जमाने की यादें ताजा कर गई ये पोस्ट,
    आभार।

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  5. सर जी, लग रहा है मौसम ही जिम्मेदार है, जिधर देखो नोस्ताल्जिया ही नोस्ताल्जिया।
    और जब मोहब्बत होती है तो पता चल ही जाता है,
    ’अंदाज महकने लगते हैं, बातों में शरारत होती है’
    सब पता चल जाता है जब दिल में मोहब्बत होती है’

    गुजरे जमाने की यादें ताजा कर गई ये पोस्ट,
    आभार।

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  6. वाह वाह ! क्या बात है ... ज़रा उस गली का नंबर तो बताइए ... और वो कौन हैं जिनको इतने दिन बाद याद किया जा रहा है ?

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  7. आखिर क्यों, तुम आ जाती थीं, छ्ज्जे पर,
    जब मेरे गुज़रने का वख्त होता था,तुम्हारी गली से,
    pyaar ek khamosh abhivyakti hai

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  8. इन्द्रनील जी ,
    ऐसी बातों को क्यों पूछते हो जो बताने के काबिल नहीं है!

    आप सब का शुक्रिया अपनी प्रशंसा व्यक्त करने के लिये!

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  9. गलियों का अपना ही महत्व है.
    गलियों में दुनिया की श्रेष्ठ कहानियां छिपी होती है.
    आपकी रचना बहुत ही शानदार है
    आपको बधाई.

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  10. आप की रचना 16 जुलाई के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें.
    http://charchamanch.blogspot.com
    आभार
    अनामिका

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  11. बहुत सुंदर रचना

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  12. शायद मैं अब जान पाया इतने साल बाद के,
    मैं क्यों साफ़ सडक छोड कर घर जाता था,
    उस तंग और लम्बी गली से होकर!

    बहुत खूब .... सपमों की दुनिया में ले जाती है आपकी रचना ...
    बस गुज़रे वक़्त में रहने का मन करता है ..

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