Saturday, October 2, 2010

पंचतत्रं और इकीसवीं सदी!

एक बार की बात है!
"’एक’ खरगोश ने ’एक’ कछुये से कहा!"......


’पंचतंत्र’ की कथाओं में ऐसा पढा था,

पर शायद, वो बीसवीं सदी की बात है!

एक्कीसवीं सदी में न तो,
विष्णु शर्मा को जानने वाले हैं!

न ये मानने वाले कि,

किसी ’खरगोश’ ने कभी किसी ,’कछुये’ से,


बात की होगी!

क्यों कि आज तो ’इंसान’की कही बात 
’इंसान’ को समझ में नहीं आती!

’खरगोश’और ’कछुये’ के बीच हुये संवाद को,
समझने वाला कहां ढूडते हो, 

इस समय में आप! 





8 comments:

  1. ह्म्म्म,और उस कहानी के बारे में -जब शेर ने चूहे को खाया नहीं उसकी फ़रियाद सुन ली कि बाद में कभी उसके काम आऊंगा ? हा हा हा, अब बच्चे सुनेंगे ?भला हाथ में आई कोई चीज कोई छोड़ता है कभी ?

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  2. सच कहा ... कलयुग आ गया ... ये तो जानवरों को भी पता है ...
    बहुत अच्छा लिखा है ...

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  3. bilkul "to the point" likha hai..you are quite a versatile writer..

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  4. अब पंचतंत्र कौन पढता है ...
    अब तो स्पंज बाब, टॉम एन जेर्री, शिन चान और डोरेमोन से सीख लेते हैं बच्चे ...

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  5. बहुत अच्छी कविता है जो आप कहना चाहते थे आपने अपनी कविता के माध्यम से कह दिया !

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  6. आज का सच कह दिया दार्शनिक अन्दाज़ मे…………अतिसुन्दर्।

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बेहिचक अपने विचारों को शब्द दें! आप की आलोचना ही मेरी रचना को निखार देगी!आपका comment न करना एक मायूसी सी देता है,लगता है रचना मै कुछ भी पढने योग्य नहीं है.So please do comment,it just takes few moments but my effort is blessed.