Please feel free to express your true feelings about the 'Post' you just read. "Anonymous" Pl Excuse Me!
बेहिचक अपने विचारों को शब्द दें! आप की आलोचना ही मेरी रचना को निखार देगी!आपका comment न करना एक मायूसी सी देता है,लगता है रचना मै कुछ भी पढने योग्य नहीं है.So please do comment,it just takes few moments but my effort is blessed.
हाँ ये ज़रूर है,
ReplyDeleteजो लोग,
कैक्टस उगाते हैं
घरों में
वो होते हैं ,
विरले,
डिफ़रैंट, हट के , अलग से,
औफ़ बीट
कैक्टस की तरह ही!... सच में
दुख पाकर भी क्या कोई,
ReplyDeleteखुश हो सकता है?
कैक्टस की तरह।' इस दुनिया मे रहते हुए वह सीख चूका होता है की दुःख भी जीवन का हिस्सा है और स्थायी नही रहता. जवान मौत के बाद भी क्या आपने उन बारह दिनों के अंदर लोगों को हंसी,मजाक करते, मुस्कराते नही देखा? हमारी मूल प्रवृति खुश रहने वाली बनाई है ईश्वर ने.हम ज्यादा लम्बे समय तक दुखी रह नही सकते.....दुखों का पहाड़ टूटने पर भी.
केक्टस प्रतीक है संघर्ष के बीच अपने अस्तित्व को बनाए रखने का.
ऑ माय गोड !रचना पढ़ ली.व्यूज़ दे दिए बाद मे देखा यह किसका ब्लॉग है ?हा हा हा यह तो आप हैं.जिनने मेरे पुराने ब्लॉग उद्धवजी को तब फोलो किया था जब मैं आपकी इस दुनिया मे नई नई थी.वो ब्लॉग ब्लोक हो गया.पर...मुझे आपका नाम याद रहा. लिखने के लिए प्रेरित करने वाले लोगों मे आप भी एक थे सर !यह बात मे कभी नही भूल सकती.मैं बहुत खुश हूँ कि मैंने आपको अनजाने मे ही सही पर...........वापस ढूंढ लिया.हा हा हा
ReplyDeleteदुख पाकर भी क्या कोई,
ReplyDeleteखुश हो सकता है?
कैक्टस की तरह।
बहुत बड़ा सवाल है... अर्थ का मनन कर अगर हम इंसान भी ऐसे ही सुख दुःख में तठस्थ रहें तो कितना अच्छा हो!
बहुत कम होते हैं केक्टस की तरह ।
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना ..हर परिस्थिति मैं जीने का होसला रखता है केक्टस ..ऊपर से भले ही सख्त कटीला है पर अंदर से होता है कोमल ..
ReplyDeleteकैक्टस जैसा होना बहुत बड़े जिगरे काम है...हमेशा काँटों सर पर उठाये रखना आसान नहीं होता....
ReplyDeleteनीरज
Ktheleo aur kush दोनों एक ही शख्स के नाम है हा हा हा मेरे कृष्णा ने मुझे यूँ पहले ही मिला दिया था और मैं अनजान थी. क्या बोलूं? उसके' लिए ????
ReplyDeleteमैं क्थेलियो को ढूंढ रही थी वो एकदम मेरे कृष्णा की तर्ज ही कुश के रूप मे मुझसे बात भी कर रहा था और मेरी मदद भी ..... मैं जाने किस दुनिया मे थी.कुश! एक अद्भुत अनुभव दिया है मुझे तुमने.
अनजाने मे इस ब्लॉग पर आई थी.अपने परिचित कुश के ब्लॉग के बारे मे सोचकर नही आई थी.पूरी प्रोफाइल पढ़ी आश्चर्य वहाँ लिखे 'कुश शर्मा' को फिर भी नही पढा था.मेरा उपर वाला संदेश कुश को नही Kthelwo को है हा हा हा
मेरा कृष्णा भी जाने कब किस रूप मे आ जाये इसलिए........ सबमे उसे ढूंढती हूँ.पर.......... पहचान नही पाती.पर वो मेरे मन को भांप इच्छाएं पूरी कर देता है.मैं ठहरी पागल.......समझ नही पाती क्या करूं?ऐसिच हूँ मैं तो
@ इन्दु पुरी जी,
ReplyDeleteआपके इस Comments से थोडा और भ्रम हो गया है! मुझे ऐसा लगता है,आप मुझे एक और "कुश जी" जो कि "कुश की कलम’ से नामक Blog लिखते हैं के साथ confuse कर रहीं हैं!मेरा वास्त्विक नाम कुश शर्मा है! परंतु रचनायें मैं ’ktheleo' के नाम से ही लिखता हूँ, भ्रम पैदा करना मेरा उद्देश्य नहीं पर यह एक व्यक्तिगत Choice है! आशा है, आप को अब सही तत्थय मालूम हो गया होगा!
एक बार पुन: "सच में" के प्रति आपके स्नेह का शुक्रिया! "सच में" पर आतें रहें!
bahut sunder......
ReplyDeleteKEKATAS KHOOBSURAT HOTE HAIN .WO HME UNSE BHI MILA DETE HAIN JINHE HM BHEED ME DHOONDH RHE HO KISI BCHCHE KII TARAH JISKI ANGULI KISI APNE KE HATH SE CHHOOT GAI HO. YE KEKTAS TO MERA KRISHNAA HO GYA. HA HA HA
ReplyDeleteदुख पाकर भी क्या कोई,
ReplyDeleteखुश हो सकता है?
Wah....Vicharniy Panktiyan
ReplyDeleteदुख पाकर भी क्या कोई,
खुश हो सकता है?
…शायद!
कविता प्रभावशाली है… … …
हार्दिक बधाई !
लेकिन क्या कैक्टस दुख पाने के लिए जाना जाता है?
- राजेन्द्र स्वर्णकार
आपका ब्लॉग पहली बार देखा गलती मेरी है क्षमा चाहूँगा| केक्टस की बिम्ब लेकर इतनी सुंदर रचना विरले ही रच पाते है ........
ReplyDelete@ सुनील जी,
ReplyDeleteआप "सच में" के काफ़ी समय पहले से प्रशंसक हैं! आप मेरे ब्लोग की Follower पट्टिका पर भी मौजूद हैं कोई बात नहीं एक बार फ़िर आपका स्वागत है! "सच में" के प्रति प्रेम बनायें रखें!
@ राजेन्द्र जी,
ReplyDeleteयही तो मुद्दा है जो जीवन भर कांटों मे रहकर भी, यदा कदा ही सही फ़ूल तो देता है, दुख पाने के लिये नही जाना जाता!
और वो जो रोज़ फ़ूलों की सेज़ पर सोते हैं एक दिन अगर पंखुरी भी चुभ जाये तो शिकायत करते हैं!!
अच्छी कविता, फोटो भी सुंदर सुंदर छांटे हैं
ReplyDeleteकहते है कि कैक्टस जैसे काँटो वाले पौधे घर में नहीं होने चाहिए
ReplyDeleteआप की रचना बड़ी अच्छी लगी और दिल को छु गई
ReplyDeleteइतनी सुन्दर रचनाये मैं बड़ी देर से आया हु आपका ब्लॉग पे पहली बार आया हु तो अफ़सोस भी होता है की आपका ब्लॉग पहले क्यों नहीं मिला मुझे बस असे ही लिखते रहिये आपको बहुत बहुत शुभकामनाये
आप से निवेदन है की आप मेरे ब्लॉग का भी हिस्सा बने और अपने विचारो से अवगत करवाए
धन्यवाद्
दिनेश पारीक
http://dineshpareek19.blogspot.com/
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
कैक्टस जैसा होना बड़े जिगरे काम है
ReplyDeleteसंजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.com