Thursday, December 15, 2011

अपनी कहानी ,पानी की ज़ुबानी !


एक अरसा हुया ये चन्द शब्द लिखे हुये, आज ऐसे ही "सच में" की रचनाओं की पसंदगी नापसंदगी देखने की कोशिश कर रहा था, इस रचना को सब से ज्यादा बार पढा गया है, मेरे ब्लोग पर लेकिन हैरानी की बात है कि इस पर सिर्फ़ एक पढने वाले ने अपनी राय ज़ाहिर की है! मुझे लगा कि एक बार फ़िर से इसे पोस्ट करूं ,मेरे उन पाठकों के लिये जो पारखीं हैं और जिन की नज़र से यह रचना  चूक गई है!

आबे दरिया हूं मैं,कहीं ठहर नहीं पाउंगा,

मेरी फ़ितरत में है के, लौट नहीं आउंगा।

जो हैं गहराई में, मिलुगां  उन से जाकर ,
तेरी ऊंचाई पे ,मैं कभी पहुंच नहीं पाउंगा।

दिल की गहराई से निकलुंगा ,अश्क बन के कभी,
बद्दुआ बनके  कभी, अरमानों पे फ़िर जाउंगा।

जलते सेहरा पे बरसुं, कभी जीवन बन कर,
सीप में कैद हुया ,तो मोती में बदल जाउंगा।

मेरी आज़ाद पसन्दी का, लो ये है सबूत,
खारा हो के भी, समंदर नहीं कहलाउंगा।

मेरी रंगत का फ़लसफा भी अज़ब है यारों,
जिस में डालोगे, उसी रंग में ढल जाउंगा।

बहता रहता हूं, ज़ज़्बातों की रवानी लेकर,
दर्द की धूप से ,बादल में बदल जाउंगा।

बन के आंसू कभी आंखों से, छलक जाता हूं,
शब्द बन कर ,कभी गीतों में निखर जाउंगा।

मुझको पाने के लिये ,दिल में कुछ जगह कर लो, 
मु्ठ्ठी में बांधोगे ,तो हाथों से फ़िसल जाउंगा।  


**********************************************************************************
आबे दरिया       : नदी का पानी
आज़ाद पसन्दी Independent Thinking(nature)
फ़लसफा          : Philosophy


14 comments:

  1. मेरी रंगत का फ़लसफा भी अज़ब है यारों,
    जिस में डालोगे, उसी रंग में ढल जाउंगा ...

    जबरदस्त ... धमाकेदार गज़ल है ... किसी वजह से मिस हो गई होगी वर्ना इतनी लक्जवाब गज़ल पढ़ के कमेन्ट न हो .... ये तो गुस्ताखी है ...

    ReplyDelete
  2. मेरी आज़ाद पसन्दी का, लो ये है सबूत,
    खारा हो के भी, समंदर नहीं कहलाउंगा।

    वाह ..बहुत खूबसूरत गज़ल ...

    ReplyDelete
  3. वह ..क्या बात है खूबसूरत गजल
    भावनाओं से परिपूर्ण ..आभार

    ReplyDelete
  4. मुझको पाने के लिये ,दिल में कुछ जगह कर लो,
    मु्ठ्ठी में बांधोगे ,तो हाथों से फ़िसल जाउंगा।
    wakai behad badhiya

    ReplyDelete
  5. मुझको पाने के लिये ,दिल में कुछ जगह कर लो,
    मु्ठ्ठी में बांधोगे ,तो हाथों से फ़िसल जाउंगा।
    In panktiyon me to zindagi kaa nichod hai!
    Pooree rachana behad sundar hai...harek shabd,harek pankti!

    ReplyDelete
  6. आबे दरिया हूं मैं,कहीं ठहर नहीं पाउंगा,
    मेरी फ़ितरत में है के, लौट नहीं आउंगा।

    जो हैं गहराई में, मिलुगां उन से जाकर ,
    तेरी ऊंचाई पे ,मैं कभी पहुंच नहीं पाउंगा।
    Kya gazab kee rachana hai!

    ReplyDelete
  7. बहुत सुन्दर भावप्रणव अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
  8. आप सभी सुधिजनों का आभार,प्रशंसा के लिये।

    ReplyDelete
  9. sanjay kr ; On e-mail said:
    कुश सरजी,
    हैरान मत होईये, होता है बहुत बार ऐसा। पहले की छोडि़ये, हमसे तो आज भी कमेंट पब्लिश नहीं हो पा रहा। बहुत अच्छा लिखा था\है, मुझे जो सबसे अच्छी पंक्ति लगी वो ये है -
    जलते सेहरा पे बरसुं, कभी जीवन बन कर,
    सीप में कैद हुया ,तो मोती में बदल जाउंगा।

    ReplyDelete
  10. आप ने बहुत अच्छा किया जो इसे दोबारा पोस्ट किया ,बहुत ही उम्दा रचना है हर पंक्ति पर वाह निकलती है मुंह से ....आप बधाई के हकदार है ,बधाई स्वीकारें.....

    ReplyDelete
  11. दिल की गहराइयों से निकलने वाले अश्क असर करते हैं... यूँ ही नहीं आती शब्दों में जान!
    इस सुन्दर रचना के लिए... आपको ढेर सारी बधाई!

    ReplyDelete
  12. हर शेर बेहद उम्दा, भावपूर्ण ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकारें.

    ReplyDelete
  13. मुझको पाने के लिये ,दिल में कुछ जगह कर लो,
    मु्ठ्ठी में बांधोगे ,तो हाथों से फ़िसल जाउंगा।

    वाह,खूबसूरत शेर !

    ReplyDelete
  14. मेरी रंगत का फ़लसफा भी अज़ब है यारों,
    जिस में डालोगे, उसी रंग में ढल जाउंगा।

    बहुत खूब श्री मान जी

    ReplyDelete

Please feel free to express your true feelings about the 'Post' you just read. "Anonymous" Pl Excuse Me!
बेहिचक अपने विचारों को शब्द दें! आप की आलोचना ही मेरी रचना को निखार देगी!आपका comment न करना एक मायूसी सी देता है,लगता है रचना मै कुछ भी पढने योग्य नहीं है.So please do comment,it just takes few moments but my effort is blessed.