Wednesday, July 4, 2012

मैं और मेरा खुदा!




घुमड रहा है,
गुबार बन के कहीं,
अगर तू सच है तो,
ज़ुबाँ पे आता क्यों नही?

"ईश्वरीय कण"

सच अगर है तो,
तो खुद को साबित कर,
झूंठ है तो,
बिखर जाता क्यों नहीं?

आईना है,तो,
मेरी शक्ल दिखा,
तसवीर है तो,
मुस्कुराता क्यों नहीं?




मेरा दिल है,
तो मेरी धडकन बन,
अश्क है,
तो बह जाता क्यों नहीं?

ख्याल है तो  कोई राग बन,
दर्द है तो फ़िर रुलाता,
क्यों नही?

बन्दा है तो,
कोई उम्मीद मत कर,
खुदा है तो,
नज़र आता क्यों नहीं?


बात तेरे और मेरे बीच की है,
चुप क्यों बैठा है?
बताता क्यों नहीं? 

12 comments:

  1. वाह...

    बहुत सुन्दर.....
    पढते चले जाने का मन किया....

    अनु

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  2. बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ. आभार.

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  3. बन्दा है तो,
    कोई उम्मीद मत कर,
    खुदा है तो,
    नज़र आता क्यों नहीं?
    ..bahut sundar bhavpoorn rachna!

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  4. बढ़िया अभिव्यक्ति है ..हम सबकी आवाज !
    शुभकामनायें आपको !

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  5. धाँसू सवाल!
    होगा तो मिलेगा.... कभी ना कभी!
    आशीष
    --
    इन लव विद.......डैथ!!!

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  6. mri hi panktiya peshe nja hai kbhi likha tha "khuda hmko nhi dikhta,khuda unko nh dikhta, kbhi bn aaena khud ko dekho,bn noor chehere ka khud b khud dikh jayga , kbhi khud aayeene se rubru hokar dekho,such dil se uar juba pe aajayga....." hridaysparshi panktiya

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    1. आपकी ज़र्रानवाज़ी है मेरे दोस्त..!

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  7. bohot hi sundar rachna.....

    dhanyawaad

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