Tuesday, November 13, 2012

मशालें!

जिस्मों की ये मजबूरियाँ,
रूहों के तकाज़े,
इंसान लिये फिरते हैं,
खुद अपने ज़नाजे।




आँखो मे अँधेरे हैं,
हाथों में मशालें,
अँधों से है उम्मीद 
के वो पढ लें रिसाले!






हमको नहीं है इल्म
कैसे पार लगें हम,
लहरों की तरफ़ देखें,
या कश्ती को संभालें!








5 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    दीपावली की शुभकामनाएँ!

    ReplyDelete
  2. हमको नहीं है इल्म
    कैसे पार लगें हम,
    लहरों की तरफ़ देखें,
    या कश्ती को संभालें! ... बहुत बढ़िया

    ReplyDelete
  3. वाह बहुत बढिया ...उम्दा

    शुभकामनाएँ

    ReplyDelete
  4. नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ... आशा है नया वर्ष न्याय वर्ष नव युग के रूप में जाना जायेगा।

    ब्लॉग: गुलाबी कोंपलें - जाते रहना...

    ReplyDelete
  5. हम तो कायल हो गए। बहुत खूब

    ReplyDelete

Please feel free to express your true feelings about the 'Post' you just read. "Anonymous" Pl Excuse Me!
बेहिचक अपने विचारों को शब्द दें! आप की आलोचना ही मेरी रचना को निखार देगी!आपका comment न करना एक मायूसी सी देता है,लगता है रचना मै कुछ भी पढने योग्य नहीं है.So please do comment,it just takes few moments but my effort is blessed.