दोस्ती का देखने को,अब कौन सा मंज़र मिले,
फिर कलेजा चाक हो,या पीठ में खंजर मिले!
मेरी बरबादी की खातिर,दुश्मनी कम पड गई,
दिल में यारों को बसाया,उसके बस खंडहर मिले!
मैंने समझा था गुलों की सेज,तुरबत को मगर,
कब्र में जा कर भी बस,बदनामी के नश्तर मिले।
लोग लेकर चल पडे थे,सामाँ मसर्रत के सभी,
नींद की गठरी नहीं थी,खाली उन्हे बिस्तर मिले।
फिर कलेजा चाक हो,या पीठ में खंजर मिले!
मेरी बरबादी की खातिर,दुश्मनी कम पड गई,
दिल में यारों को बसाया,उसके बस खंडहर मिले!
मैंने समझा था गुलों की सेज,तुरबत को मगर,
कब्र में जा कर भी बस,बदनामी के नश्तर मिले।
लोग लेकर चल पडे थे,सामाँ मसर्रत के सभी,
नींद की गठरी नहीं थी,खाली उन्हे बिस्तर मिले।
मेरी बरबादी की खातिर,दुश्मनी कम पड गई,
ReplyDeleteदिल में यारों को बसाया,उसके बस खंडहर मिले!...
वाह लाजवाब शेर हैं सभी ... कमाल की गज़ल ...
बहुत खूब
ReplyDeleteवाह सभी शेर लाजवाब हैं....
ReplyDeleteडॉ. नागेश पांडेय संजय एवं Maheshwari kaneri जी! आप दोनों का तह-ए-दिल से शुक्रिया!
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