Friday, April 5, 2013

आदमी और चींटियाँ!



मेरे दादा जी, 

सवेरे चींटियों को,


आटा खिलाने जाते थे!

मेरे पिता जी

जब सवेरे बाहर जाते थे,


तो चींटिंयाँ, 


पैरों से न दब जायें


इस का ख्याल रखते थे,



मैं जब walk करता हूँ,


तो चीटियाँ


दिखती ही नहीं!



मेरा बेटा सवेरे

उठता ही नहीं,




पता नहीं क्या हो गया है?



इंसान,


चीटिंयों,


नज़र

और समय को!


5 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की ५५० वीं बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन की 550 वीं पोस्ट = कमाल है न मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. आपका तहे दिल से शुक्रिया मेरी बात अपने पाठकों तक पहुँचाने के लिये! आभार.

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  3. बहुत खूब लिखा |

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Please feel free to express your true feelings about the 'Post' you just read. "Anonymous" Pl Excuse Me!
बेहिचक अपने विचारों को शब्द दें! आप की आलोचना ही मेरी रचना को निखार देगी!आपका comment न करना एक मायूसी सी देता है,लगता है रचना मै कुछ भी पढने योग्य नहीं है.So please do comment,it just takes few moments but my effort is blessed.