Friday, April 5, 2013

आदमी और चींटियाँ!



मेरे दादा जी, 

सवेरे चींटियों को,


आटा खिलाने जाते थे!

मेरे पिता जी

जब सवेरे बाहर जाते थे,


तो चींटिंयाँ, 


पैरों से न दब जायें


इस का ख्याल रखते थे,



मैं जब walk करता हूँ,


तो चीटियाँ


दिखती ही नहीं!



मेरा बेटा सवेरे

उठता ही नहीं,




पता नहीं क्या हो गया है?



इंसान,


चीटिंयों,


नज़र

और समय को!