Sunday, August 18, 2013

औरत और दरख्त!

औरत और दरख्त में क्या फ़र्क है?

मुझे नज़र नहीं आता,

क्या मेरी बात पे
आपको यकीं नहीं आता!

तो गौर फ़रमाएं,

मैं गर गलत हूँ!
तो ज़ुरूर बतायें

दोनों दिन में खाना बनाते हैं
एक ’क्लोरोफ़िल’ से,
और दूसरी
गर कुछ पकाने को न हो,
तो सिर्फ़ ’दिल’ से!

एक रात को CO2 से साँस बनाये है,
दूसरी हर साँस से आस लगाये है,

पेड की ही तरह ,
औरत मिल जायेगी,
हर जगह,

खेत में, खलिहान में,

घर में, दलान में,

बस्ती में,श्मशान में,

हाट में, दुकान में,

और तो और वहाँ भी,
जहाँ कॊई पेड नहीं होता,

’ज़िन्दा गोश्त’ की दुकान में!

अब क्या ज़ुरूरी नहीं दोनों को बचाना?

11 comments:

  1. बिल्कुल जरूरी है साहब, दोनों से ही तो जीवन है। और हाँ, नमस्ते :)

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    1. संजय भाई! शुक्रिया! और इस बार सिर्फ़ ’नमस्ते’ नहीं,
      सलाम नमस्ते !

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  2. क्या साम्य स्थापित किया है कविता ने दोनों के बीच!
    वाह !

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    1. अनुपमा जी आपका दिल से शुक्रिया!

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  3. बहुत ही सुंदर सार्थक और प्रस्तुती, आभार।

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    1. राजेन्द्र जी,
      धन्यवाद आपकी हौसला अफ़ज़ाई माइने रखती है!

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  4. आज काफी दिनों के बाद इस ब्लॉग पर आया हूँ, शायद इसकी फीड मिस हो गयी हो गयी थी... देर आये दुरुस्त आये और क्या बढ़िया पढने को मिला है कुछ... वाह....

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    1. शुक्रिया शेखर साहिब,
      You said it all,देर आयद ,दुरुस्त आयद! :-)

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  5. जरूरी तो दोनों को ही बचाना है ... एक नहीं तो श्रृष्टि नहीं दूजी नहीं तो हम भी नहीं ....

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    1. सही कहा, आपने! शुक्रिया, दिगम्बर भाई।

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  6. पिछले २ सालों की तरह इस साल भी ब्लॉग बुलेटिन पर रश्मि प्रभा जी प्रस्तुत कर रही है अवलोकन २०१३ !!
    कई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०१३ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !
    ब्लॉग बुलेटिन के इस खास संस्करण के अंतर्गत आज की बुलेटिन प्रतिभाओं की कमी नहीं (27) मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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बेहिचक अपने विचारों को शब्द दें! आप की आलोचना ही मेरी रचना को निखार देगी!आपका comment न करना एक मायूसी सी देता है,लगता है रचना मै कुछ भी पढने योग्य नहीं है.So please do comment,it just takes few moments but my effort is blessed.