Tuesday, November 11, 2014

एक दिन

एक दिन
दोपहर बीते
आना!
नहीं शाम को,
नहीं,
तब तो मैं
होश में आ चुका होता हूँ।

सारे मिथक,
और सच
उजागर कर दूँगा,
बे हिचक!

हाँ मगर,
अकेले नहीं!
साथ में हो तुम्हारे,
सारे झूठ ,
वो भी
एकदम
नंग धडंग
जैसे पैदा हुये थे वो!