"सच में!"
दिल की हर बात अब यहाँ होगी, सच और सच बात बस यहाँ होगी
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किस्मत
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किस्मत
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Sunday, April 22, 2012
निर्मल सच
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अपनी नज़रों से जब जब मैं गिरता गया, मेरा रुतबा ज़माने में बढता गया! मेरे अखलाक की ज़बरूत घटती गई, पैसा मेरी तिजोरी में बढता गया! मे...
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Sunday, July 31, 2011
वजह आँसुओं की...!
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तुम्हें याद होगा, अपना, बचपन जब, हम दोनों खिल उठते थे, किसी फ़ूल की मानिन्द! अकसर बे वजह, पर कभी कही गर मिल जाता था. कोई एक.. कभी त...
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Monday, May 16, 2011
शायद मेरी तनहाई आपको रास न आये!
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आप, मेरी तन्हाई पे तरस मत खाना, मैं तन्हा हूँ नहीं, मेरे तमाम साथी दर्द,दुश्मनों की दुआयें, दोस्तों की बेवाफ़ाई,गम-ओ-रंज़, मुफ़लिसी,...
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Tuesday, January 4, 2011
गुफ़्तगू बे वजह! दूसरा बयान!
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मोहब्बतों की कीमतें चुकाते, मैने देखे है, तमाम जिस्म और मन, अब नही जाता मैं कभी अरमानो की कब्रगाह की तरफ़। दर्द बह सकता नहीं, दरिया की तरह,...
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Saturday, October 2, 2010
पंचतत्रं और इकीसवीं सदी!
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एक बार की बात है! "’एक’ खरगोश ने ’एक’ कछुये से कहा!"...... ’पंचतंत्र’ की कथाओं में ऐसा पढा था, पर शायद, वो बीसवीं सदी की बा...
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