"सच में!"

दिल की हर बात अब यहाँ होगी, सच और सच बात बस यहाँ होगी

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Saturday, March 12, 2011

अश्रु अंजलि!(जापान को)

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जब भी कोशिश करता हूँ, गर्व करने की, कि मैं इंसान हूँ! एक थपेडा, एक तमाचा कुदरत का, हल्के से ही सही, कह के जाता है, कि "मैं...
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Saturday, December 25, 2010

मानवीय विवशतायें !

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विवशतायें! मौन और संवाद की, विवशतायें, हर्ष और अवसाद की, विवशताये, विवेक और प्रमाद की, विवशतायें, रुदन और आल्हाद की, विवशताये...
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ktheLeo (कुश शर्मा)
दर्द बह सकता नही, दरिया की तरह, थम जाता है, मानिन्द लहू की, बस बह के, थोडी देर में| ************************तो बस, मैं,न दरिया, न दर्द,न लहू और शायद थोडा थोडा ये सब कुछ!
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