Friday, January 16, 2009

एक कविता जो मैने लिखी ही नही.

बात की बात खुराफात की लात,
काँटे की चोंच में से निकले तीन तालाब,
दो सूखे एक में पानी ऩही,
जिस में पानी नही,
उससे निकले तीन कुम्हार,
दो लूले ,एक के हाथ ही नही,
जिस के हाथ ही नही,
उसने बनाए तीन बर्तन,
दो टूटे एक में पैंदा ही नही,
जिस में पैंदा नही,
उसमें पकाए तीन चावल,
दो कच्चे, एक पका ही नही,
जो पका नही,
उससे खिलाए तीन पंडित,
दो रूठ गये,एक आया ही नही,
जो आया नही 
उसे दिए तीन सिक्के,
दो खोटे,एक चला ही नही,
जो चला ऩही,
उससे लाया तंबाक़ू,
तंबाक़ू वाला भाग गया,
तंबाक़ू मिला ही नही.



4 comments:

  1. हा! हा! ---------हा!

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  2. Bahut Accha bhaiya ! Machali wali bhi post kariye !

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  3. मैने लीखे तीन कॉमेंट,दो मैने भेजे नही,एक आप तक पहुँचा नही!!!!!ha ha...

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  4. तैने लिखी नही मैने पढी नही

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Please feel free to express your true feelings about the 'Post' you just read. "Anonymous" Pl Excuse Me!
बेहिचक अपने विचारों को शब्द दें! आप की आलोचना ही मेरी रचना को निखार देगी!आपका comment न करना एक मायूसी सी देता है,लगता है रचना मै कुछ भी पढने योग्य नहीं है.So please do comment,it just takes few moments but my effort is blessed.