Wednesday, January 14, 2009

"सूखे सर्राटे"!




एक कहानी बहुत पुरानी!


मेरी दादी ने तमाम कहानियाँ मुझे सुनाई थी उनमें से कुछ तो पन्चतन्त्र के मानदंडो पर खरी उतरती हैं कुछ ऐसी हैं जो कभी भी किसी मानदंड पर खरी नही उतरेंगी पर उनका ज्ञान किसी भी साहित्यक कथानक़ को चुनौती दे सक़ता है.


ऐसी ही एक कथा आप सब के साथ बाँटना चाहता हूँ.


(मेरा दिल तो करता है के  ब्रज भाषा जो मेरी दादी की बोली थी, में आप सबको यह सुनाऊं पर मैं जानता हूँ के,शायद आप सब को उतना आनंद ना आए, अत: हिन्दुस्तानी से ही काम चलाता हूँ.)




" एक बार गिलहरी और गिरगिट के बीच दोस्ती हो गयी ,गिलहरी ने गिरगिट से कहा कभी मेरे घर आना.


गिरगिट ने पूछा कहाँ आना है,गिलहरी बोली वो जो नदी के किनारे हरा भरा से पेड़ दिख रहा है,बस उसीके एक 'खोखर' में मैने अपना आशियाना बनाया है, वहीं चले आना.वैसे सबेरे -सबेरे मैं घर को सजाती हूँ,दिन में खाना पानी जुटाती हूँ, इसलिए शाम को आना बेहतर होगा. 


अगले दिन गिरगिट गिलहरी के घर पहुँच गया. गिलहरी का घर सुंदर तो था ही अपितु उसकी सजावट और हरे भरे वातावरण से गिलहरी के टेस्ट का भी भली भाँति पता चलता था.खैर ,गिरगिट जी का पहले तो नदी के ठंडे पानी से स्वागत हुया ,हरी घास, नर्म पत्तियाँ,वो सर्दियों का बचाया हुया अखरोट का टुक़ड़ा भी और जो कुछ गिलहरी को लगा के गिरगिट की पसंद का हो सक़ता है पेश किया गया.दुनियाँ जहाँ की बातें हूई और फिर जैसा की दस्तूर है,,विदा लेते समय गिरगिट ने भी गिलहरी को अपने यहाँ आने का निमंत्रण देते हुए विदा ली.


जाते जाते गिलहरी ने पूछा, ' गिरगिट जी आप रहते कहाँ हो?' गिरगिट ने जवाब दिया,' वो जहाँ नदी का किनारा ख़तम होता है और 'ऊसर' के किनारे सूखा हुया 'खजूर का पुराना पेड़ है बस वहीं आ जाना.'




कई दिन बीत जाने पर एक दिन गिलहरी ने सोचा सामाजिक संबंधों के नाते मेरा गिरगिट के यहाँ जाना ही उचित है,और वो सही समय देख कर उस के घर जा पहुँची पहले तो रास्ते की गर्म रेत से उसके नाज़ुक़ पाँव ही जल गये ,और उपर से दिक़्क़त ये के जब घर के पास पहुँची तो इतने ऊपर चढ़ने में नानी याद आ गई .


खैर, जैसे तैसे गिरगिट जी से मुलाक़ात हुई ,काफ़ी समय गुजर गया पर 'आवोभगत' का कोई नामोनिशान नही.पर गिलहरी तो सामाजिक़ मान्यताओं और सभ्यता के संस्कारों से बँधी हुई थी अत: धीरे से बोली, "गिरगिट जी आप अपना समय कैसे गुज़ारते हैं?"


गिरगिट तो जैसे इसी पल का इंतजार कर रहा था, लपक कर बोला, " अरे बड़े मज़े का काम है आईंये आप को अभी दिखता हूँ." इतना कह कर गिरगिट झट से लंबे खजूर के तने पर सरपट दौड़ता हुया नीचे से उपर और उपर से नीचे "सर्राटे" भर कर दौड़ने लगा . और तेज़ आवाज़ लगाकर गिलहरी से बोला आओ मेरी दोस्त थोड़ा सा तुम भी 'एंजाय' करो ना.


गिलहरी समझ चुकी थी यहाँ तो सिर्फ़ "सूखे सर्राटे " ही मिलेंगे.  
उसने तुरंत अपने दोस्त से विदा ली और मन ही मन कहा,  
"कितना अद्भुत सैर सपाटा,मुझे मिला सूखा सर्राटा" 





अब इस कहनी से मिलने वाले ज्ञान को में आप सब पाठकों की मेधा पर इस प्रॉमिस व वचन के साथ छोड़ देता हूँ , कि यदि किसी प्रबुध पाठक ने मुझ से वो ज्ञान जो मैने इस कथा से हासिल किया है, माँगा और मैने देने में ज़रा भी आनाकानी की तो मेरे सिर के उतने ही टुकड़े होंगे जितने 'वेताल' का जवाव ना देने पर ,'राजन विक्रमादित्य' के सर के हो सक़ते थे.


3 comments:

  1. भाई,जी ! बहुत बढ़िया , लिखते रहिए----------पर ज़रा मर्म समझाइये

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  3. सम्बंधों की आत्मीयता का इज़हार हमारे वातावरण से प्रभावित होता है,

    गिरगिट ये समझ ही नही पाया के गिलहरी का स्वागत करने के लिए उसे क्या करना चाहिए था .उसे लगा के सरपट सरराटा ही जीवन का सर्व सुख है अत: अपने प्रिय अतिथि को उसी का आनंद दिलाऊं. जब कि गिलहरी के परिवेश के मुताबिक़ उसकी उम्मीद गिरगिट से कुछ और ही रही होगी.

    अब ये तो गिरगिट और गिलहरी जाने, हम लोग आपस में एक दूसरे से पूछ सक़ते हैं,

    "मैं आपके घर आया तो क्या खिलाओगे.
    और मेरे घर आए तो क्या लेकर आओगे."

    Jokes aparts lets learn to keep others taste and expectations in mind while we have social exchange.

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