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Wednesday, November 25, 2009

आम ऒ खास का सच!

मेरा ये विश्वास के मैं एक आम आदमी हूं,
अब गहरे तक घर कर गया है,
ऐसा नहीं के पहले मैं ये नहीं जानता था,

पर जब तब खास बनने की फ़िराक में,
या यूं कहिये सनक में रह्ता था,

यह  कोई आर्कमिडीज़ का सिधांत नही है,
कि पानी के टब में बैठे और मिल गया!

मैने सतत प्रयास से ये जाना है कि,
किसी आदमी के लिये थोडा थोडा सा,
"आम आदमी" बने रहना,
नितांत ज़रूरी है!

क्यों कि खास बनने की अभिलाषा और प्रयास में,
’आदमी ’ का ’आदमी’ रह जाना भी
कभी कभी मुश्किल हो जाता है,
आप नहीं मानते?

तो ज़रा सोच कर बतायें!
’कसाब’,’कोडा’,’अम्बानी’,’ओसामा’,..........
’हिटलर’ .......... .........  ........
..... ......
आदि आदि,में कुछ समान न भी हो

तो भी,

ये आम आदमी तो नहीं ही कहलायेंगे,
आप चाहे इन्हे खास कहें न कहें!

पर!

ये सभी, कुछ न कुछ गवां ज़रुर चुके हैं ,

कोई मानवता,
कोई सामाजिकता,
कोई प्रेम,
कोई सरलता,
कोई कोई तो पूरी की पूरी इंसानियत!



और ये भटकाव शुरू होता है,
कुछ खास कर गुज़रने के "अनियन्त्रित" प्रयास से,
और ऐसे प्रयास कब नियन्त्रण के बाहर
हो जाते हैं पता नहीं चलता!

इनमें से कुछ की achivement लिस्ट भी
खासी लम्बी या impressive हो सकती है,
पर चश्मा ज़रा इन्सानियत का लगा कर देखिये तो सही,
मेरी बात में त्तर्क नज़र आयेगा!


5 comments:

  1. शानदार अभिव्यक्ति के लिए बधाई!

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  2. 4 Comments form "कविता"(http://kavitasbyshama.blogspot.com)

    वन्दना अवस्थी दुबे said...

    मैने सतत प्रयास से ये जाना है कि,
    किसी आदमी के लिये थोडा थोडा सा,
    "आम आदमी" बने रहना,
    नितांत ज़रूरी है!

    बहुत सच्ची बात.

    November 25, 2009 5:43 AM


    मनोज कुमार said...

    दिलचस्प

    November 25, 2009 3:57 AM


    shama said...

    Leo ji'
    Ek aam aadmee bane rahna hee aapki khasiyat hai...! Yahee soch insaniyat darshatee hai..!

    November 26, 2009 3:31 AM


    रश्मि प्रभा... said...

    bahut badhiyaa......aam shaksiyat bane rahna kitna zaruree hai

    November 26, 2009 3:56 AM

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  3. Aapki tatha Rashmi ji ki rachnaon se kavita blog nikhar jata hai...bahut, bahut dhanywaad!

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  4. gahri baat hai ... sochne waali baat likhi hai is rachna mein aapne ....

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